Baal Kavita On Sea समुद्र
समुद्र
लहर-लहर लहराता रहता ।
गरज-गरज कर क्या तू कहता ?
कभी नहीं चुप होता है क्यों ?
कभी नहीं तू सोता है क्यों ?
बड़ी निराली तेरी माया ।
मैंने तेरा अंत न पाया ॥
यद्यपि है तू पड़ा अकेला ।
किन्तु लगा-सा है इक मेला ॥
लहरें लोट-पोट हो जाती ।
नाच-नाच हैं नहीं अघाती ॥
मानो तू है उनका बेटा ।
जो कि पालने पर है लेटा ॥
झूम रहा है झूल रहा है।
पचक रहा है फूल रहा है ।।
तू अति चंचल अलबेला है ।
बालक-सा करता खेला है ।।
ऊपर नीला नीचे नीला।
शान्तिमयी है तेरी लीला ॥
यानी तू नभ चूम रहा है।
यद्यपि भू पर झूम रहा है ।
हे समुद्र ! इतना ही कर दे।
मुझमें भी निज साहस भर दे ।
थकूँ न नेक न हिम्मत हारूँ।
तुझ-सा जग में सुयश पसारूँ॥
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