Baal Kavita on Rainy Season वर्षा की बहार

वर्षा की बहार
आसमान में उमड़े बादल,
पृथ्वी पर हरियाली है।
नन्हीं से नन्हें हाथों में,
मेंहदी की नव लाली है।
लड़के सुख से झूल रहे हैं
कैसा झूला डाला है।
हर-हर करता बड़े जोर से
नीचे बहता नाला है।
घर में पानी वन में पानी
का पानी ही की माया है।
पानी-पानी पैदल चलना .
मुन्नू को भी भाया है।
लंबी-लंबी  पतली-पतली
घास हवा पर हिलती हैं।
उन पर पड़ पानी की बूँदें
नव मोती-सी खिलती हैं।
लो फिर पानी लगा बरसने
जल्दी घर को भागो यार !
छत पर देखो, मुन्नी भी अब
अपनी गुड़ियाँ रही सँभार ।।
गली-गली से देखो कैसी
वही बिकट पानी की धार ।
आज न हम पढ़ने जाएँगे।
आती वहाँ बड़ी बौछार ॥
सोचो तो जी ईश्वर ने क्या
वर्षा खूब बनाई है।
उसकी सारी सृष्टि की बस
छिपी यही चतुराई है।
पृथ्वी ने यह हरियाली सब
वर्षा द्वारा पाई है।
वर्षा ही से बरस रही
ईश्वर की बड़ी बड़ाई है ॥
अन्न इसी से पैदा होता
यही किसानों का जीवन ।
सच पूछो तो केवल वर्षा
ही है इस भारत का धन ॥
आओ  शिशुओं, हाथ जोड़
वर्षा को हम सब करें प्रणाम ।
क्योंकि उसी से प्राप्त हुए हैं
हमको खेल और आराम ॥


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