मोर Baal Kavita on Peacock


मोर
मोर मनोहर सूरत तेरी ।
चुरा रही है आँखें मेरी ॥
ऐसा रूप कहाँ से लाया ?
ऐसा रंग कहाँ से पाया ?
नदी किनारे है जो टीला ।
वहाँ किया करता क्या लीला ?
आ मेरी बगिया में आ जा।
कीयू कीयू शोर सुना जा ॥
यह गान सिखा दे प्यारे !
अपना नाच दिखा दे प्यारे !
ऐसे हैं न गगन में तारे।
जैसे है तू दुम में धारे॥
जो बादल है जल बरसाता ।
जो है अन्न और फलदाता ॥
वह है तुझे बहुत ही भाता।
उसको देख नाचता गाता ॥
जन को पर जो साँप सताता।
तू है मित्र उसे खा जाता ॥
यह लख नीति निराली तेरी।
यही समझ में आता मेरी ॥
जो सज्जन परोपकारी हैं।
वे आदर के अधिकारी हैं ।।
पर जो हैं खल पापी दुर्जन ।
हम हों उनके पूरे दुश्मन ।।


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