Baal Kavita on Mango आम


आम
पके-पके क्या आम रसीले !
लटक रहे हैं पीले पीले ।।
बाँस बड़ा वह लाओ प्यारे !
जितने कहो तोड़ दूँ  सारे ।।
महक रहीं हैं दस दिशाएँ ।
दौड़ रही हैं इत-उत गाएँ।
आम गिरा कोई पाती हैं।
तो फौरन चट कर जाती है ।।
है यह बड़ा बगीचा सबसे ।
जाने खड़ा हुआ है कब से !
चलती नेक न लू की माया ।
बड़ी घनी है इसकी छाया॥
वह देखो जो रखा घड़ा है।
उसका शीतल नीर बड़ा है ।।
उससे थोड़ा पानी लाओ।
धो-धो कर आमों को खाओ।
नहीं किसी से कोई कम है।
सब मीठे अमृत के सम हैं।
पर तुमको जो भावे खाओ।
कपड़ों में रस नहीं चुराओ ।।
इहर-इहर कर धूल उड़ाती ।
अगर कभी है आँधी आती॥
बिछा आम हैं इतने जाते ।
ठौर न हम रखने को पाते ।।
जब गरजेगा नभ में बादल ।
पृथ्वी पर कुछ बरसेगा जल ॥
तब तुम दूना रस पाओगे ।
यदि इन आमों को खाओगे ।
जिसमें आम सरीखा फल है।
जिसमें गंगा जी का जल है।
उस भारत को शीश झुकाओ ।
प्रभु से उसकी खैर मनाओ ।



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