Baal Kavita on Horse घोड़ा


घोड़ा
चाचा की यह छड़ी नहीं है,
है यह मेरा घोड़ा ।
जी चाहे तो तुम भी इस पर,
चढ़ सकते हो थोड़ा ॥
भूसा-चारा दाना-पानी,
एक न पीता-खाता ।
छोड़ मदरसा और गाँव में,
सभी जगह है जाता ॥
चाची को जब लखता है,
तब है अति दौड़ लगाता ।
पर चाचा को देख जहाँ का,
तहाँ खड़ा रह जाता ।।
होती है घुड़दौड़ जहाँ पर,
आज वहीं है जाना।
इस घोड़े की करामात,
है दुनिया को दिखलाना ॥
हटो, हटो, मत अड़ो राह में,
कहना मानो लल्ला !
नहीं लात लग जाएगी,
तो होगा नाहक हल्ला ॥


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