हिमालय Baal Kavita on Himalaya


हिमालय
लखो हिमालय है क्या लेटा ।
हो मानों पृथ्वी का बेटा ॥
यदि वैसा तुम भी तन पाते ।
तो किस तरह मदरसे जाते ॥
यह कॉलेज में पढ़ा नहीं है।
मोटर पर भी चढ़ा नहीं है ।
पर मूर्ख न इसे कह देना।
बच्चो ! इससे शिक्षा लेना ।
बड़ी बली है इसकी छाती।।
जो गंगा की धार बहाती ॥
जिसमें हैं हम नाव चलाते ।
जिसमें हैं हम खूब नहाते ।।
बादल इसमें अड़ जाते हैं।
मनमाना जल बरसाते हैं।
जिससे होती खेतीबारी ।
खाते हम पूरी तरकारी ॥
दुश्मन इसे देख डर जाते ।
बल का इसके पार न पाते ।।
पहरेदार हमारा है यह।
कहो न किसको प्यारा है यह ॥
घोर घटा-सा खड़ा हुआ है।
महाबली-सा अड़ा हुआ है ।।
सेवा करना इससे सीखो।
कभी न डरना इससे सीखो ॥


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