Baal Kavita On guava अमरूद


अमरूद
अमरूदों की बड़ी बहार ।
आओ बच्चो ! चले बजार ॥
पैसे-पैसे बिकते यार !
रुपए में पाओगे चार ॥
नहीं छीलने का कुछ काम ।
यों ही खाकर करो तमाम ॥
ज्यादा नहीं फुलाना पेट ।
मुँह में लेना नहीं लपेट ॥
छुड़ा-छुड़ा जाओगे खीज ।
अलग न होंगे इसके बीज ।
खाओ सभी साथ ही साथ ।
गंदे करो न अपने हाथ ।।
मिले परस्पर हैं सब अंग।
हुलिया यहाँ फूट को तंग॥
गूदा बीज रंग रस छाल ।
मिल सब मेल सिखाते लाल!
कैसा मीठा कैसा गोल!
हो सकता क्या इसका मोल ?
तुम भी मीठी बोली बोल ।
शरबत-सा दो बच्चो ! घोल ॥
होता इसका छोटा पेड़ ।
चढ़ सकती यदि चाहे भेड़ ।
चलो दिखावें इसका बाग ।
पर न तोड़ कुछ जाना भाग ।।
मेरी तो है ऐसी बान ।
शीत काल में गंगा स्नान ॥
करता पहुँच इलाहाबाद ।
लेता अमरूदों का स्वाद ।।


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