Baal Kavita on Elephant हाथी


हाथी
लिए सूँड में सीढ़ी अपनी,
देखो हाथी आता है।
डरावनी है सूरत पर यह,
सचमुच नहीं डराता है।
घिरी घटा सी चलता है,
क्या चाल अनोखी मनहारी ।
है इसके सम नहीं दूसरा,
थल में और जीवधारी॥
यदि तुम इस पर चढ़ना चाहो,
अभी बैठ यह जावेगा।
लिये सूँड में जो सीढ़ी है,
तन पर वही लगावेगा ।
जब तुम ऊपर जा पहुँचोगे,
पुनः खड़ा हो जावेगा।
और महावत को देगा,
या सीढ़ी स्वयं उठावेगा ।।
चिह्न राह में चक्की के से,
इसके पैर बनाते हैं।
सप की तरह हिलते इसके,
दोनों कान दिखाते हैं।
अजगर सी है सूँड निराली,
काले बादल सा तन है।
भाले से हैं दाँत इसी से,
देख सहम जाता मन है ॥
किन्तु चाहता है बच्चों को,
भय न करो कुछ भी मन में ।
उतना ही यह सीधा है,
जितना बल है इसके तन में ॥
चली अगर हो तो न किसी को,
तुम्हें उचित है दुख देना।
इतने भारी हाथी से यह,
छोटी-सी शिक्षा लेना ॥


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