Baal Kavita on Dove कबूतर


कबूतर
बैठा बैठा घर के ऊपर ।
क्या करता है बता कबूतर ?
आ मेरे शिशुके ढिग आ जा।
जो तुझको भावे सो खा जा ॥
यहाँ न पूसी आने पाती ।
आ जाती तो डंडे खाती ॥
इससे तू भय कर न किसी का ।
मेरे घर में डर न किसी का ।
सोने की पैंजनी अनोखी ।
गढ़वा दूँगी तुझको चोखी ॥
रुन-झुन रुन-झुन उसे बजाना ।
गुटरूगूँ  कर गाना गाना ॥
मेरा राजदुलारा बेटा ।
मेरा हसता प्यारा बेटा ॥
चावल तुझे चुगाऊँगा अति ।
तेरे पीछे धाऊँगा अति ॥
कबूतर यदि हो कोई राजकुमारी ।
दुनिया में सब से सुकुमारी ॥
तो इस बेटे से बतलाना ।
इसके राजदूत बन जाना ॥
जब आवेगी बहू हमारी ।
इस बेटे की दुलहिन प्यारी॥
तो मैं इसकी न्यारी माता ।
दूँगी तुझको कंठी छाता ॥


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