Baal Kavita on Cuckoo कोयल


कोयल
किसको गीत सुनाती है तू ?
मन किसका बहलाती है तू ?
कोयल ! किसे बुलाती है तू ?
इधर-उधर चिल्लाती कू! कू!
किसको ढूँढ़ रही है प्यारी ?
कुछ तो बतला राजदुलारी !
धिक, तेरा वह साथी कैसा?
छिप जो तुझे खिझाता ऐसा ।।
मुझको उसका नाम बता दे।
क्या करता है काम बता दे।
उसका पता लगाऊँगा मैं ।
तुझसे उसे मिलाऊँगा मैं ॥
गीत निराला गाती है तू।
मुझे बहुत ही भाती है तू ।।
बना रहूँ नित तेरा चेरा।
यही चाहता है मन मेरा ॥
कू ! कू ! करना मुझे सिखा दे।
अपने घर की राह बता दे ॥
शाम सबेरे आऊँगा मैं।
"खेलूँगा सुख पाऊँगा मैं ।
रहती तू न सदैव यहाँ है ।।
तेरा असली देश कहाँ है ?
किसने तुझे सिखाया गाना ?
इधर उधर फिरना मनमाना ।
नई पत्तियों की बुन चादर ।
जब वसंत आमों को सादर ॥
पहना कर बौरा देता है।
तेरा भी मन हर लेता है ।
तभी कदाचित आती है तू ।
गीत प्रेम के गाती है तू ॥
सब का मन बहलाती है तू ।
करती फिरती कू! कू ! क ! कू !
यद्यपि तेरी सूरत काली
फिर भी बोली बोल निराली ॥
सब ऐबों से बच जाती है।
नहीं कुरूपा कहलाती है ॥
आ प्यारी ! गोदी में आ जा।
कू ! क ! कर कानों में गा जा ।
मैं भी मधुर वचन बोलूँगा ।
जब जब अपना मुँह खोलूँगा॥



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