Baal Kavita on Calf बछड़ा


बछड़ा
बहुत बड़ा है मेरा बछड़ा ।
पीता है जल रोज दो घड़ा ।
हरी-हरी घासें खाता है।
साँझ सबेरे चिल्लाता है।
गैया के संग चरने जाता।
दूध नहीं अब पीने पाता ॥
पर न जरा है बुरा मानता।
मानों कुछ भी नहीं जानता ॥
साथ हमारे खेला करता ।
सिर से हमको ठेला करता ।।
पर न लड़कियों को है भाता ।
शायद उनकी गुड़िया खाता ।।
मेरा घर उसका भी घर है।
पर न मिला उसको बिस्तर है ।
है जमीन ही पर नित सोता।
नहीं चटाई को भी रोता ।
शायद इसे न पढ़ना आता ।
इसीलिये कुछ माँग न पाता ।।
पर इसकी परवाह न इसको ।
मान आन की चाह न इसको ।
और बड़ा जब हो जाएगा।
खेत जोतने यह जाएगा ॥
काम करेगा फिर तन रहते ।
वर्षा शीत घाम सब सहते ॥
जो कुछ हैं हम पीते-खाते।
इसकी ही मेहनत से पाते ॥
है मेरा यह सच्चा साथी ।
देकर इसे न लूँगा हाथी ॥



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