Baal Kavita On Bijali बिजली



बिजली
ज्यों ही तू दिखलाई पड़ती,
त्यों ही तू छिप जाती है।
किसे झाँकने बतला बिजली,
दौड़-दौड़ कर आती है।
छूट रही है मानो सोने,
के पानी की पिचकारी।
ऐसा सुंदर रूप कहाँ से,
बतला तो पाया प्यारी ॥
साथ खेलने को हमको है,
क्या तू बिजली बुला रही ।
किसी परी के रोते शिशु को,
या थपकी दे सुला रही।
या पृथ्वी पर पास किसी के,
चाह रही है तू आना ।
या बादल का चाम चीर कर,
सुनती उसका गुर्राना ॥
अरी ! इशारा करती है क्या,
चमका कर आँखें मेरी।
कौन समझ सकता है ऐसी,
गुपचुप-सी बोली तेरी ॥
शायद तेरी माँ ने भी है,
कहा खिलोने देने को ।
जिससे ऐसा थिरक रही है,
उन्हें अभी से लेने को ।

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