Baal Kavita on Beard बाबा की दाढ़ी
बाबा की दाढ़ी
बाबा ! दाढ़ी देख
तुम्हारी,
खुशी मुझे होती है
भारी।
इसे कहाँ से लाए हो
तुम,
किसकी है यह
राजदुलारी ?
मुझे बहुत ही
भाती है यह,
मन मेरा बहलाती
है यह ।
और गुदगुदा कर
गालों पर,
हरदम मुझे
हँसाती है यह ।।
हँसती है यदि इसको
छू लूँ,
कहो किस तरह इसको भूलूँ?
फिर तुम क्यों
बिगड़ोगे बाबा!
यदि इसके सँग मैं भी
झूलूँ?
लड्डू इसे न
लाऊँगा मैं,
रोटी नहीं
खिलाऊँगा मैं ।
दाँत बहुत पतले
हैं इसके,
शरबत जरा
पिलाऊँगा मैं ॥
पकड़ चाँद को यदि मैं पाता !
यदि यह मेरे मुँह पर होती,
अपने दुःख सुख मुझसे रोती।
तो मैं इसमें गुँथवा देता,
अम्मा के हारों के मोती ॥
पर न इसे परवाह किसी की,
और न कुछ भी चाह किसी की ।
जो होते हैं सच्चे लड़के,
वे चलते हैं राह इसी की ॥
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