श्यामाचरण दुबे
श्यामाचरण दुबे
श्यामाचरण दुबे का जन्म सन् 1922 में
मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में हुआ। उन्होंने नागपुर विश्वविघालय से मानव
विज्ञान में पीएच.डी. की। वे भारत के अग्रणी समाज वैज्ञानिक रहे हैं। उनका
देहांत सन् 1996 में हुआ।
मानव और संस्कृति, परंपरा और
इतिहास बोध, संस्कृति तथा शिक्षा, समाज और भविष्य, भारतीय
ग्राम, संक्रमण की
पीड़ा, विकास का
समाजशास्त्र, समय और संस्कृति हिंदी में उनकी प्रमुख पुस्तकें
हैं। प्रो. दुबे ने विभिन्न विश्वविघालयों में अध्यापन किया तथा अनेक
संस्थानों में प्रमुख पदों पर रहे। जीवन, समाज और संस्कृति के ज्वलंत
विषयों पर उनके विश्लेषण एवं स्थापनाएँ उल्लेखनीय हैं। भारत की जनजातियों
और ग्रामीण समुदायों पर केंद्रित उनके लेखों ने बृहत समुदाय का ध्यान
आकर्षित किया है। वे जटिल विचारों को तार्विQक विश्लेषण के साथ सहज
भाषा में प्रस्तुत करते हैं। उपभोक्तावाद की संस्कृति बाज़ार की गिरफ्त में
आ रहे समाज की वास्तविकता को प्रस्तुत करता है।
लेखक का मानना है कि हम विज्ञापन की चमक—दमक के कारण वस्तुओं के
पीछे भाग रहे हैं, हमारी निगाह गुणवत्ता पर नहीं है। संपन्न और
अभिजन वर्ग द्वारा प्रदर्शनपूर्ण जीवन शैली अपनाई जा रही है, जिसे
सामान्य जन भी ललचाई निगाहों से देखते हैं। यह सभ्यता के विकास की
चिंताजनक बात है, जिसे उपभोक्तावाद ने परोसा
है। लेखक की यह बात महत्वपूर्ण है कि जैसे—जैसे यह दिखावे की संस्कृति फैलेगी, सामाजिक
अशांति और विषमता भी बढ़ेगी।
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