केदारनाथ अग्रवाल
केदारनाथ अग्रवाल
केदारनाथ अग्रवाल का जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा ज़िले के
कमासिन गाँव में सन् 1911
में हुआ। उनकी शिक्षा इलाहाबाद और आगरा विश्वविघालय से हुई। केदारनाथ अग्रवाल पेशे
से वकील रहे हैं। उनका तत्कालीन साहित्यिक आंदोलनों से गहरा जुड़ाव रहा है। सन् 2000 में उनका देहांत हो गया।
नींद के बादल, युग की गंगा, फूल नहीं रंग बोलते हैं, आग का आईना, पंख और पतवार, हे मेरी तुम, मार प्यार की थापें और कहे केदार खरी—खरी उनकी प्रमुख काव्य—कृतियाँ हैं। उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और साहित्य
अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
केदारनाथ अग्रवाल प्रगतिवादी धारा के प्रमुख कवि माने जाते
हैं। जनसामान्य का संघर्ष और प्रकृति सौंदर्य उनकी कविताओं का मुख्य प्रतिपाघ है।
उनके यहाँ प्रकृति का यथार्थवादी रूप व्यक्त हुआ है जिसमें शब्दों का सौंदर्य है, ध्वनियों की धारा है और है स्थापत्य की कला। संगीतात्मकता
उनके काव्य की एक अन्यतम विशेषता है। बुंदेलखंडी समाज का दैनंदिन जीवन अपने खुलेपन
और उमंग के साथ उनके काव्य में अभिव्यक्त हुआ है। केदार कविता की भाषा को लोकभाषा
के निकट लाते हैं और ग्रामीण जीवन से जुड़े बिंबों को आत्मीयता के साथ प्रस्तुत करते
हैं।
प्रस्तुत कविता में कवि का प्रकृति के प्रति गहन अनुराग
व्यक्त हुआ है। वह चंद्र गहना नामक स्थान से लौट रहा है। लौटते हुए उसके किसान मन
को खेत—खलिहान एवं उनका प्राकृतिक परिवेश सहज आकर्षित कर लेता है।
इस कविता में कवि की उस सृजनात्मक कल्पना की अभिव्यक्ति है जो साधारण चीज़ों में भी
असाधारण सौंदर्य देखती है और उस सौंदर्य को शहरी विकास की तीव्र गति के बीच भी
अपनी संवेदना में सुरक्षित रखना चाहती है। यहाँ प्रकृति और संस्कृति की एकता
व्यक्त हुई है।
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