सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रानंदन पंत का जन्म उत्तरांचल के
अल्मोड़ा ज़िले के कौसानी गाँव में सन् 1900 में हुआ। उनकी शिक्षा बनारस और इलाहाबाद में
हुई। आज़ादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने कालेज छोड़
दिया। छायावादी कविता के प्रमुख स्तंभ रहे सुमित्रानंदन पंत का काव्य—क्षितिज 1916 से 1977 तक
फैला है। सन् 1977 में उनका देहावसान हो गया।
वे अपनी जीवन दृष्टि के विभिन्न चरणों में
छायावाद, प्रगतिवाद
एवं अरविंद दर्शन से प्रभावित हुए। वीणा, ग्रंथि, गुंजन, ग्राम्या, पल्लव, युगांत, स्वर्ण किरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा
आदि उनकी प्रमुख काव्य—कृतियाँ हैं। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारतीय
ज्ञानपीठ पुरस्कार एवं सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
पंत की कविता में प्रकृति और मनुष्य के
अंतरंग संबंधों की पहचान है। उन्होंने आधुनिक हिंदी कविता को एक नवीन अभिव्यंजना
पद्धति एवं काव्यभाषा से समृद्ध किया। भावों की अभिव्यक्ति के लिए सटीक शब्दों के चयन
के कारण उन्हें शब्द शिल्पी कवि कहा जाता है।
ग्राम श्री कविता में पंत ने गाँव की
प्राकृतिक सुषमा और समृद्धि का मनोहारी वर्णन किया है। खेतों में दूर तक फैली
लहलहाती फसलें, फल—फूलों से लदी पेड़ों की डालियाँ और गंगा की
सुंदर रेती कवि को रोमांचित करती है। उसी रोमांच की अभिव्यक्ति है यह कविता।
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