माखनलाल चतुर्वेदी

माखनलाल चतुर्वेदी
माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद ज़िले के बाबई गाँव में सन् 1889 में हुआ। मात्र 16 वर्ष की अवस्था में वे शिक्षक बने। बाद में अध्यापन कार्य छोड़कर उन्होंने प्रभा पत्रिका का संपादन शुरू किया। वे देशभक्त कवि एवं प्रखर पत्रकार थे। उन्होंने कर्मवीर और प्रताप का भी संपादन किया। सन् 1968 में उनका देहांत हो गया।
हिम किरीटनी, साहित्य देवता, हिम तरंगिनी, वेणु लो गूँजे धरा उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। उन्हें पद्मभूषण एवं साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाएँ राष्ट्रीय भावना से युक्त हैं। उनमें स्वतंत्रता की चेतना के साथ देश के लिए त्याग और बलिदान की भावना मिलती है। इसीलिए उन्हें एक भारतीय आत्मा कहा जाता है। इस उपनाम से उन्होंने कविताएँ भी लिखी हैं। वे एक कविकार्यकर्ता थे और स्वाधीनता आंदोलन के दौरान कई बार जेल गए। उन्होंने भक्ति, प्रेम और प्रकृति संबंधी कविताएँ भी लिखी हैं।
चतुर्वेदी जी कविता में शिल्प की तुलना में भाव को अधिक महत्व देते हैं। उन्होंने परंपरागत छंदबद्धता एवं तत्सम शब्दावली के स्थान पर बोलचाल की भाषा के साथसाथ उर्दू, फ़ारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया है।
ब्रितानी उपनिवेशवाद के शोषण तंत्र का बारीक विश्लेषण करती कैदी और कोकिला कविता बहुत लोकप्रिय रही है। यह कविता भारतीय स्वाधीनता सेनानियों के साथ जेल में किए गए दुर्व्यवहारों और यातनाओं का मार्मिक साक्ष्य प्रस्तुत करती है।

कवि जेल में एकाकी और उदास है। कोकिल से अपने मन का दुख, असंतोष और ब्रितानी शासन के प्रति अपने आक्रोश को व्यक्त करते हुए वह कहता है कि यह समय मधुर गीत गाने का नहीं बल्कि मुक्ति का गीत सुनाने का है। कवि को लगता है कि कोयल भी पूरे देश को एक कारागार के रूप में देखने लगी है इसीलिए अर्द्धरात्रि में चीख उठी है।

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