Baal Kavitaदिन
दिन
कैसा है देखो सुंदर दिन ।
जो चाहो सब सकते हो गिन ॥
आँखें लख सकती हरियाली ।
फूल तोड़ सकता है माली ॥
चाहे जहाँ अकेले जाओ।
खेलो, खाओ,पढ़ो
पढ़ाओ
नहीं किसी का अब कुछ डर
है।
सारा जग अपना ही घर है।
सड़कों पर कोलाहल छाया ।
यह लो एक मदारी आया ।।
बजा रहा है डमरू डम-डम ।
नचा रहा है भालू छम-छम ।।
मंदिर में हैं डटे पुजारी ।
भीड़ मदरसे में है भारी॥
खुले दुकानों के हैं ताले
।
चीख रहे हैं फेरीवाले ॥
कौवे काँ ! काँ! बोल रहे हैं।
कुत्ते बिल्ली डोल रहे हैं।
अम्मा काढ़ रही हैं जाली ।
आ बैठी है चूड़ी वाली ॥
अंधकार जो था अति छाया ।
जिसने हमसे जगत छिपाया ॥
देखो बन कर वही उजाला ।
दिखलाता है दृश्य निराला ॥
तितली और पतंगे प्यारे ।
चींटी चिड़ियाँ भौंरें कारे॥
लगे काम में हैं सब अपने ।
नहीं देखता कोई सपने ॥
बच्चो ! तुम भी काम करो कुछ।
दिन में मत आराम करो कुछ ॥
इसीलिए है चतुर विधाता ।
दिन का सुंदर समय बनाता ॥
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