Baal Kavita Usha Kaal
उषा काल
चिड़ियाँ बोलीं, हिलीं ताएँ,
लगी झूमने तरु शाखाएँ।
पूर्व दिशा में रहे ना तारे,
आँखें खोलो बोलो प्यारे।
लगी चटखने चटचट कलियाँ,
मह-मह महक रही हैं गलियाँ।
दुहते हैं ग्वाले गण गाएँ,
बहती हैं स्वर्गीय हवाएँ।
आँखों पर आई अलसानी,
थकी हुई है निद्रा रानी।
रात तुम्हारी कर रखवाली,
जागो, अब है जाने वाली।
चंदा की मुस्कान निराली,
तारों भारी गगन की थाली।
बाग-बगीचों में आ बिखरी,
फूलों की क्या रंगत निखरी।
माँग रही भर उषा निराली,
पूरब में फैली है लाली।
अब न रहा है बहुत अँधेरा,
उठो आ गया पुनः सवेरा।
Comments
Post a Comment