Baal Kavita Shaam


शाम
कैसी घड़ी शाम की आई।
पश्चिम में है लाली छाई॥
गलियों में गोधूली छाई ।
हल-बैलों ने छुट्टी पाई ॥
हिलती हैं अब नहीं लताएँ ।
लौट रही हैं वन से गाएँ ॥
खुश हो हो किसान गाते हैं।
खेतों से घर को आते हैं।
पेड़ों पर कोलाहल छाया ।
चिड़ियों ने है शोर मचाया ॥
गई बालकों से घिर नानी ।
सोच रही है नई कहानी ॥
मोहन अब खा चुका मलाई ।
चंदा मामा पड़े दिखाई ॥
लल्ली भी गाती है लोरी ।
कहतीसो जा गुड़िया गोरी ॥
उतर रही है नींद निराली ।
ले सुंदर सपनों की जाली ।
बंद हुए सब खेल खिलौने ।
बच्चों के बिछ गए बिछौने ।
क्यों दीपक से खेल रहे हो?
लगा हाथ में तेल रहे हो ?
देखो क्या कहते हैं तारे।
शाम हुई सो जाओ प्यारे !

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