Baal Kavita Savera
सबेरा
उठ मेरे नैनों के
तारे ।
सब के प्यारे
राजदुलारे ॥
आँगन में कौवे आए
हैं।
लख तो तुझको
क्या लाए हैं?
कैसी सुंदर घास हरी
है।
उसमें कैसी ओस भरी
है॥
मानों हरी बिछी
हो धोती ।
सिले सैकड़ों
जिसमें मोती ।।
तालाबों में कमल गए
खिल ।
रहे हवा के झोंकों
से हिल ॥
भौंरें उन पर
घूम रहे हैं।
झूम-झूम मुख चूम
रहे हैं ।
जगी मछलियाँ जल के
भीतर ।
बगुले बैठे ध्यान
लगा कर ॥
घर से चले
नहानेवाले ।
जगे पुजारी खुले
शिवाले॥
घाम सुनहली छत पर छाया
।
बाबा जी ने शंख बजाया
।।
फूल तोड़ कर
लाया माली।
गाय गई चरने
हरियाली ।।
सड़कों पर न रहा सन्नाटा ।
नौकर गया पिसाने आटा ॥
इक्के, बग्घी, टमटम, मोटर।
लगे दौड़ने इधर से उधर ।।
हलवाई ने आग जलाई।
बनी जलेबी ताजी भाई॥
लड़के सब जाते हैं पढ़ने ।
लगा ठठेरा लोटा गढ़ने ॥
चम-चम चमक रही सुखदाई ।
गमले पर लख तितली आई॥
जगा रही माँ उठ, आलस
तज ।
छप्पर पर आ बैठा सूरज ।।
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