Baal Kavita On Sun सूरज


सूरज
देखो सूरज चमक रहा है।
अंगारे - सा दमक रहा है।
चकाचौंध आँखों में आती ।
यह रोशनी न देखी जाती ॥
बिजली जो बसती बादल में ।
चमका देती आँखें पल में ॥
क्या यह उसका ही है गोला।
या निज नयन ईश ने खोला ॥
दिन भर यह चलता रहता है।
दीपक-सा जलता रहता है ।
रात कहीं सोने जाता है ।
और सवेरे फिर आता है।
कोल्हू में पेरा-सा रहता।
क्या जाने कितने दुख सहता ।।
किसका डर है इसको भाई ।
जिससे यह सहता कठिनाई ॥
नहीं किसी का डर है इसको ।
किन्तु ध्यान है जग का इसको ॥
अगर न आ यह कर उजाला ।
तो पड़ जाय विश्व में पाला ।।
भार जगत सेवा का ले सिर ।
रह कैसे यह सकता है स्थिर॥
इसीलिए है सदा समय पर ।
करता दूर अँधेरा आकर ॥
अगर नियम से आलस खोकर ।
तुम भी काम करो दृढ़ होकर ॥
सत्य, प्रेम से उर चमकाओ ।
तो सूरज ही से हो जाओ ॥


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