Baal Kavita On Moon चंद्रमा


चंद्रमा
चारु चंद्रमा  निकला भाई ।
कैसी विमल चाँदनी छाई ।।
मानो उज्ज्वल शीशा भारी।
ढाँक रहा हो दुनिया सारी ।।
लुप-लुप करते या मन मारे।
आसमान में जितने तारे ।
है यह उनका सबका राजा।
वैसा सुंदर लश्कर साजा ।।
अगर न होता कभी अँधेरा।
रहता सदा सूर्य का फेरा ॥
तो शशि की यह सुंदरताई।
कभी न पड़ती मित्र दिखाई ॥
सूरज है ज्यादा गरमाता ।
लखते चकाचौंध हो जाता ॥
इसीलिए वह सदा अकेला।
आसमान में करता खेला ॥
यों होते जो लड़के प्यारे।
क्रोधी, दुष्ट, मूख, मन मारे ॥
कोई उनका साथ न देता।
कभी न बे बन सकते नेता ॥
पर जो शशि समान हैं कोमल ।
नहीं किसी से कुछ करते छल ।।
बन जाते वे सबके प्यारे ।
तारों में ज्यों चंद्र पधारे ॥
यह घटता बढ़ता रहता है।
पर न किसी से कुछ कहता है ।
काम नियम पर अपना करता।
दुख-सुख सब में धीरज धरता ।
कविगण इसका ही गुण गाते ।
सुंदर इसे विशेष बताते ॥
ओहो ! रात हुई अब ज्यादा ।
देखो नाक बजाते दादा ॥
जल्दी अम्मा दूध पिला दे।
चंदा को झट यहाँ बुला दे ॥
यदि उसके संग सोऊँगा मैं ।
तो न कभी भी रोऊँगा मैं ॥
आ !ले! दूध मलाई खा ! खा!
चंदा मामा आ ! आ! आ! आ!


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