Baal Kavita On Garmi


गर्मी
गर्मी आई, गर्मी आई,
खूब करो जी स्नान ।
संध्या समय छनै ठंडाई
हो शरबत का पान ।।
तरी भरी हैं तरबूजों में,
खूब उड़ाओ : आम ।
अजी न लगते खरबूजों के ,
लेने में कुछ दाम ॥
खस की डट्टी लगी हुई है,
पंखे का है ज़ोर ।
आँधी आती धूल उड़ाती,
करती हर-हर शोर ॥
बंद हुआ है स्कूल हमारा,
अब किसकी परवाह ?
चलो मौज से दावत खावें
है मुन्नू का ब्याह ॥
जल में थोड़ा बरफ डाल दो,
कैसा ठंडा वाह !
जाड़े में था बैर इसी से ,
अब है इसकी चाह ।
आओ छत पर पतंग उड़ावें,
सूर्य गए हैं डूब ।
दिन भर घर में बैठे बैठे,
लगती थी अति ऊब ॥
बजा रहे चिमटा बाबा जी,
करते सीताराम ।
पहन लँगोटा पड़े हुए हैं,
कंबल का क्या काम ?
शाम हो गई आओ छत पर,
सोवें पाँव पसार ।
विमल चाँदनी छिटक रही है,
ज्यों गंगा की धार ।
लुप-लुप करते अगणित तारे,
ज्यों कंचन के फूल ।
हैं मुझको प्राणों से प्यारे,
सकता इन्हें न भूल ॥
ऐसी सुखमय गर्मी को भी,
बुरा कहो क्यों यार ?
मालूम हुआ आज मुझको
है झूठा सब संसार ॥


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