Baal Kavita on Fire आग
आग
सूरज का तू टुकड़ा है या,
बिजली की तू बेटी है।
या तारों के साथ कभी तू,
आसमान में लेटी है।
आग बता सीखा है किससे,
तू ने यह चमचम करना
काले बुरे कोयलों में,
सोने की-सी रंगत भरना ।
रंग-रूप है बड़ा अनोखा,
तेज निराला है तेरा।
तेरे साथ खेलने को नित,
चित्त चाहता है मेरा ॥
माना मैंने मेरा खाना,
तू ही सदा पकाती है ।
पर यदि थोड़ा भी छूता हूँ,
तो क्यों मुझे जलाती है।
सच कहता हूँ अगर न होती,
तुझमें ऐसी आँच कड़ी।
तो लड़के-लड़कियाँ खेलते,
तुझको ले ले घड़ी-घड़ी ॥
बिना दाँत के बच्चे तो,
तुझको खा भी शायद जाते ।
क्योंकि सदा वे मुँह में भर,
लेते हैं जो कुछ भी पाते ।।
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