Baal Kavita On Earth पृथ्वी


पृथ्वी
पृथ्वी माता ! पृथ्वी माता !
तुम न लगा सकती हो छाता ॥
जब बादल बरसाता पानी ।
जब गरमी पड़ती मनमानी ॥
कैसे यह दुख तुम सहती हो।
नहीं किसी से कुछ कहती हो ।
शायद है न तुम्हारी माता ।
मिले कहाँ से तुमको छाता ।।
तुम पर खड़े पहाड़ अनेकों।
तुम पर पड़े समुद्र अनेकों॥
लिए हुए यह बोझा भारी |
कब तक खड़ी रहोगी प्यारी?
आओ पास हमारे आओ।
खेलो-कूदो मन बहलाओ ॥
हो तुम गेंद की तरह गोली ।
छोटी भी बन जाओ भोली ॥
साथ हमारे खेल मचाना ।
हँसना हमको खूब हँसाना ॥
अगर कहीं बरसेगा पानी ।
छाता मैं तानूँगा रानी ॥
पृथ्वी बोली-प्यारे बेटे?
मेरे राजदुलारे बेटे ?
अगर गेंद मैं बन जाऊँगी ।
तो न काम की रह जाऊँगी ।।
जग के प्राणी क्या खाएँगे ?
और कहाँ रहने जाएँगे ।
सोच न केवल अपनी घाते ।
कर दुनिया के हित की बातें ॥


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