Baal Kavita On Clouds बादल


बादल
देखो बादल गरज रहे हैं।
आसमान में लरज रहे हैं।
पूरब से दौड़े आते हैं।
जाने कहाँ भागे जाते हैं ।
दिन चढ़ता है या ढलता है।
पता न सूरज का चलता है।
आज न दिन का होगा फेरा ।
बना रहेगा सुभग सबेरा ॥
नाच रहे हैं मोरों के दल।
मची हुई है बन में हलचल ।।
चिड़ियाँ उड़तीं शोर मचातीं।
गौएँ इत उत दौड़ लगातीं ।।
लड़के झूले झूल रहे हैं।
फूल अनेकों फूल रहे हैं।
छाई है बन में हरियाली।
बहती ठंडी हवा निराली ॥
कहीं सफेद कहीं हैं काले ।
कहीं रुई से फूले-फाले ।
बढ़ते ही आते हैं बादल ।
मनमाना बरसाते हैं जल ॥
पानी भला कहाँ ये पाते ।
क्यों इतना ये शोर मचाते।
हाँ उस दिन कहती थी नानी।
लाते ये समुद्र से पानी ॥
भर लाते मटके के मटके।
जो अदृश्य हैं रहते लटके ॥
उनसे ही उँडेल देते हैं।
पानी बरसा यश लेते हैं ।
नहीं नहीं यह बात नहीं है।
ऐसा होता नहीं कहीं है।
जब गर्मी पड़ती है भारी ।
जल उठती है पृथ्वी सारी ॥
जल समुद्र का भाप बनाता ।
जितना ही सूरज गरमाता ॥
ले उड़ती है उसे हवा फिर ।
हम कहते हैं घटा रही घिर ॥
ऊपर जा जब ठंढक पाती।
भाप पुनः पानी हो जाती ॥
बोझ न सकती हवा उठा जब ।
कुछ बूँदें बन गिर जाती तब ।
ऊँचे जहाँ पहाड़ खड़े हैं।
बादल से भी बहुत बड़े हैं ।
वहीं पहुँच ये टकरा जाते ।
पानी हो फिर भू पर आते ॥
हमको क्या इससे करना है।
केवल यही चित्त धरना है ।।
बादल जो यह जल बरसाते ।
क्या कुछ उससे लाभ उठाते ॥
हाँ ! निःस्वार्थ यही सेवा है।
इसमें ही मिलता मेवा है॥
बादल से ही हों जग-पालक ।
बढ़कर वीर व्रती हम बालक ।।
पूर्ण हमारी हो यह आशा ।
तो न रहेगी कुछ अभिलाषा ।
ओ हो ! घर को भागो भाई ।
चकचौंधी आँखों में आई ।।

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