Baal Kavita in Rainy Season वर्षा ऋतु


वर्षा ऋतु
चारों ओर मची है हलचल ।
गरज रहे हैं बादल के दल ॥
चमक-चमक बिजली जाती है।
आँखों को चमका जाती है।
झम-झम बरस रहा है पानी ।
घर से नहीं निकलती नानी ॥
बेहद घिरी घटा है काली ।
बिनती है बूँदों की जाली ॥
बादल है अथवा वनमाली ?
देखो जहाँ वहीं हरियाली ॥
नाच रहे हैं मोर मुरैले ।
कीच-केंचुए घर घर फैलै ।
झरने हैं हो रहे पनाले ।
गलियों में बहते हैं नाले ॥
धूल जहाँ उड़ती थी बेढब ।
वहीं नहाता हाथी है अब ॥
नदियाँ हैं समुद्र-सी फैली।
लहर रहीं लहरें मटमैली ।।
भीगी मिट्टी महक रही है।
जल की चिड़िया चहक रही है।
मेंढक भी मुँह खोल रहे हैं।
टरटों-टरटों बोल रहे हैं।
भीग रहा बेचारा बंदर,
उसे बुला लो घर के अंदर।
है किसान भी चला रहा हल ।
खुश हो उसका रहा मन उछल ।
वर्षा ही उसका जीवन है।
यह ही उस निर्धन का धन है॥
कल जब निकला घर से बाहर ।
देखा इंद्रधनुष था सुंदर।
उसमें रंग कहाँ से आया ?
अब तक जान न मैंने पाया ॥
दौड़ो नहीं फिसल जाओगे।
मुँह में कीचड़ भर लाओगे ॥
यहीं बैठ कर देखो बादल ।
बनिए का सब नमक गया गल ॥
किया पतंगों ने है फेरा।
बादल-सा दीपक को घेरा ॥
बिगड़ रहे बैठक से दादा।
और न अब लिख सकता ज्यादा ॥




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