Baal Kavilta On Air हवा


हवा
हवा तू रहती है किस ठौर ?
भला तेरा है कैसा गात ?
न करती क्या भोजन दो कौर ?
और चलती रहती दिन-रात ॥
बादलों पर क्या तेरी सेज ?
खेलती क्या लहरों के साथ ?
रम्य हरियाली तेरा तेज,
खड़ी है क्या कर अपने हाथ ?
हिला पेड़ों की डाली रोज,
भुला कर उनके फूले फूल ।
किया नित किसकी करती खोज ?
रही है किस उलझन में झूल ?
हुई यह कैसी सनक सवार ?
अरी ! कुछ कह तो अपना हाल ।
तुझे हम अति करते हैं प्यार,
हरेंगे तेरा दुख तत्काल ।।
मगर तू तो दर्शन भी भूल,
न देती है होकर भी पास ।
यही क्या है उन्नति का मूल,
न रखना कभी किसी से आस ।
हृदय में क्यों न उठे यह बात,
तुझे तब देख लगाते गस्त ।
उचित है हमको भी दिन रात,
पड़े रहना निज धुन में मस्त ॥




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