मूर्धन्य ‘ष’ Murdhanya Sha By Avinash Ranjan Gupta
मूर्धन्य
‘ष’
देवनागरी
वर्णमाला का इकतीसवाँ व्यंजन वर्ण जो भाषा विज्ञान और व्याकरण की दृष्टि से ऊष्म, मूर्धन्य, अघोष और महाप्राण है। 'ष' के उच्चारण में जिह्वा मूर्धा को स्पर्श करती हैं
इसलिए इसे मूर्धन्य वर्ण कहते हैं।
‘ष’ से
केवल 11 ही
मूलशब्दों की रचना होती है। प्रत्यय या संधि के प्रयोग से और शब्दों की रचना होती
दिखती है।
1. षंजन
(मिलन)
2.
षंड (साँड़)
3.
षंढा (मर्दानी औरत)
4. षट्
(छह)
5. षडंग
(वेदों के छह अंग)
6. षष्टि
(साठ)
7. षष्ठ
(छठवाँ)
8. षड्यंत्र
(दुरभिसंधि Conspiracy)
9. षांठ
(शिव)
10. षोडश
(सोलह)
11. ष्ठीवन
(थूकना)
‘ष’ से
केवल संस्कृत (तत्सम) शब्दही बनते हैं। ‘ष’ में अनुनासिक (चंद्रबिंदु Semi Nasal Sound ) का
प्रयोग नहीं होता है। षँ X शब्द के प्रारंभ ‘ष’ में
आए तो उसमें इ, ई, ए, ऐ, औ, उ, ऊ
की मात्रा का प्रयोग कभी भी नहीं होगा। आधे ‘ष्’ से ‘ष्ठीवन’
(थूकना) के अतिरिक्त कभी भी कोई भी शब्द का गठन नहीं होता है।
‘ऋ’ के बाद जब ‘ष’ की ध्वनि गूंजित होती है तो उसमें ‘ष’ का ही अधिकतर प्रयोग होगा जैसे-
कृष्ण, कृषि, ऋषि, सृष्टि(अपवाद
कृश)
अगर
‘ष’ और
‘श’ दोनों
का प्रयोग एक ही शब्द में हो तो पहले ‘श’ फिर ‘ष’ का प्रयोग होता है जैसे –
विशेष, आशीष, शीर्षक
ये
संस्कृत (तत्सम) के शब्द ही होंगे।
देवनागरी
वर्णमाला का इकतीसवाँ व्यंजन वर्ण जो भाषा विज्ञान और व्याकरण की दृष्टि से ऊष्म, मूर्धन्य, अघोष और महाप्राण है। 'ष' के उच्चारण में जिह्वा मूर्धा को स्पर्श करती हैं
इसलिए इसे मूर्धन्य वर्ण कहते हैं।
‘ष’ से
केवल 11 ही
मूलशब्दों की रचना होती है। प्रत्यय या संधि के प्रयोग से और शब्दों की रचना होती
दिखती है।
1. षंजन
(मिलन)
2.
षंड (साँड़)
3.
षंढा (मर्दानी औरत)
4. षट्
(छह)
5. षडंग
(वेदों के छह अंग)
6. षष्टि
(साठ)
7. षष्ठ
(छठवाँ)
8. षड्यंत्र
(दुरभिसंधि Conspiracy)
9. षांठ
(शिव)
10. षोडश
(सोलह)
11. ष्ठीवन
(थूकना)
‘ष’ से
केवल संस्कृत (तत्सम) शब्दही बनते हैं। ‘ष’ में अनुनासिक (चंद्रबिंदु Semi Nasal Sound ) का
प्रयोग नहीं होता है। षँ X शब्द के प्रारंभ ‘ष’ में
आए तो उसमें इ, ई, ए, ऐ, औ, उ, ऊ
की मात्रा का प्रयोग कभी भी नहीं होगा। आधे ‘ष्’ से ‘ष्ठीवन’
(थूकना) के अतिरिक्त कभी भी कोई भी शब्द का गठन नहीं होता है।
‘ऋ’ के बाद जब ‘ष’ की ध्वनि गूंजित होती है तो उसमें ‘ष’ का ही अधिकतर प्रयोग होगा जैसे-
कृष्ण, कृषि, ऋषि, सृष्टि(अपवाद
कृश)
अगर
‘ष’ और
‘श’ दोनों
का प्रयोग एक ही शब्द में हो तो पहले ‘श’ फिर ‘ष’ का प्रयोग होता है जैसे –
विशेष, आशीष, शीर्षक
ये
संस्कृत (तत्सम) के शब्द ही होंगे।
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