कहानी के तत्त्व By Avinash Ranjan Gupta


कहानी के तत्त्व :
इन विशेषताओं के आधार पर कहानी के छह तत्त्व निर्धारित किए। गए हैं - कथावस्तु, पात्र तथा चरित्र चित्रण, कथोपकथन, देश-काल-वातावरण, भाषा-शैली और उद्देश्य ।
कथावस्तु/कथानक
कथावस्तु कहानी का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। यह अत्यन्त संक्षिप्त होती है। इसे अंग्रेज़ी में प्लॉट (Plot) कहा जाता है। ऐसा कहा जा सकता है कि कथावस्तु कहानी का एक प्रारंभिक नक्शा होता है। उसी तरह जैसे मकान बनाने से पहले एक बहुत प्रारंभिक नक्शा कागज़ पर बनाया जाता है। कहानी की कथावस्तु आमतौर पर कहानीकार के मन में किसी घटना, जानकारी, अनुभव या कल्पना के कारण आता है। इसके बाद कथाकार उसे विस्तार देने में जुट जाता है।

पात्र और चरित्र चित्रण
कथावस्तु को विस्तार देने में पात्र और चरित्र चित्रण एक मुख्य अंग है। कहानी का दूसरा तत्त्व पात्र और चरित्र चित्रण है। चरित्र चित्रण मुख्यतः चार प्रकारों से होता है - वर्णन, संकेत, वार्तालाप और घटनाओं द्वारा, जैसे- वर्णन से -रमेश दानी व्यक्ति है। संकेत से – वो देखो रमेश वह बड़ा दानी है। वार्तालाप से – जी आपका नाम, रमेश। आपने ही बस्ती में रहने वाले गरीब लोगों की मदद की थी। घटना से-एक गरीब बालक होटल के बाहर खड़ा था तभी रमेश ने उसे देखा और उसे पेटभर खाना खिलाया। 
कथोपकथन या संवाद
कहानी में पात्रों के संवाद बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। संवाद ही कहानी को गति देते हैं, आगे बढ़ाते हैं। कहानी में जो घटनाएँ या प्रतिक्रियाएँ होती हैं उसे पात्र कथोपकथन या संवादों के माध्यम से सामने लाते हैं। संवादों की भाषा-शैली सरस, रोचक और स्वाभाविक होनी चाहिए। वह सफल कहानीकार है जो अपनी तीव्र अनुभूतियों को भी गतिशील भाषा में व्यक्त कर सके।
कथोपकथन या संवाद की विशेषताएँ
कथोपकथन छोटे और चुस्त, व्यंजक, सांकेतिक, आकर्षक, चमत्कारपूर्ण, भावानुरूप, पात्रानुकूल और परिस्थिति के अनुरूप होना चाहिए।

चरम उत्कर्ष या क्लाइमेक्स (उद्देश्य)
चरम उत्कर्ष या क्लाइमेक्स कहानी का अंतिम तत्त्व होता है। इसमें कहानी के उद्देश्य की अभिव्यक्ति होती है। कहानी का उद्देश्य मनोरंजन के साथ साथ जीवन-संबंधी अनुभूतियों से मानव-मन का निकट परिचय कराना है।


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