Mere Roop Ka Roopakaar By Avinash Ranjan Gupta



रूपाकार
रूप मेरा रूप लेकर रूपाकार हो गया है,
कल तलक जो थी इमारत आज आधार हो गया है।  
करता था जो मन के अपनी,
रहता था स्वच्छंद जो,
सुनता था न जो किसी की ,
ज़िम्मेदार वह हो गया है।
रूप मेरा रूप लेकर रूपाकार हो गया है,
कल तलक जो थी इमारत आज आधार हो गया है।  
सोता था जो नींद अपनी ,
नींद किसी की सोने लगा,
एक नन्हें शिशु से,
उसमें सुधार हो गया है।
रूप मेरा रूप लेकर रूपाकार हो गया है,
कल तलक जो थी इमारत आज आधार हो गया है।  
हँसता है अब रूप उसका
गढ़ता है अब खुद को नित दिन,
अब तो सातों वारों से बड़ा,
परिवार उसका हो गया है।
रूप मेरा रूप लेकर रूपाकार हो गया है,
कल तलक जो थी इमारत आज आधार हो गया है।  

                                          अविनाश रंजन गुप्ता 

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