शेर का सवाशेर Sher Ka Sawasher By Avinash Ranjan GUpta


शेर का सवाशेर  
     मैं अंग्रेज़ी मीडियम स्कूल में पढ़ा हूँ और मुझे यही लगा करता था कि इस स्कूल में वो सारी बातें पढ़ा एवं बता दी जाती हैं जो सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाई या बताई जाती हैं। इस उपलब्धि से मैं अपने आपको को ज़रा विशेष समझने लगा था परंतु सरकारी स्कूलों के बच्चे ज़्यादा खुश रहते हैं। बचपन से ही उनपर ज़्यादा बोझ नहीं लादा जाता उनका बचपन बस्ते के बोझ और डबल ट्यूशनों की भेंट नहीं चढ़ता।     
     मैं हमेशा यही दिखाने की कोशिश करता रहता था कि मेरी लाइफ दूसरों की लाइफ से ज़्यादा बेहतर हैं, मैं दूसरों से ज़्यादा जानता हूँ पर मुझे भी आईना दिखने वाले लोगों ने मुझे यह मानने पर मज़बूर कर दिया कि दुनिया में हर शेर का सवाशेर होता है।
     मेरी हमेशा दूसरों से ही प्रतिस्पर्धा होती रहती थी। सड़क पर दौड़ रहे गाड़ियों में से मैं चाहकर भी सभी गाड़ियों से आगे नहीं निकल सकता। वास्तव में प्रतियोगिता दूसरों से नहीं खुद से होती है।  

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