KUNVAR NARAYAN – KAVITA KE BAHANE, BAAT SEEDHI THEE PAR कुँवर नारायण 1. कविता के बहाने 2. बात सीधी थी पर Extra Qquestions Answers
कविता के बहाने
3 Marks Questions
1.
'बाहर भीतर, इस घर उस घर' के द्वारा कवि क्या स्पष्ट करना चाहता है?
2.
कविता और बच्चे को समानांतर रखने के क्या कारण हो सकते हैं?
3.
फूल मुरझा जाते हैं पर कविता नहीं” क्यों स्पष्ट कीजिए।
4.
‘उड़ने’ और ‘खिलने’ का कविता से क्या संबंध बनता है?
5.
इस कविता के बहाने बताएँ कि ‘सब घर एक कर देने के माने’ क्या है?
6.
बात
और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, किंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में ‘सीधी बात भी टेढ़ी
हो जाती है’ कैसे?
7.
बात एवं शरारती बच्चे का बिंब स्पष्ट कीजिए।
8.
कवि किस चमत्कार के बल पर वाहवाही की उम्मीद करता है?
9.
भाषा में 'पेंच कसना' और 'बात की चूडी मर जाना’ से क्या तात्पर्य है?
10.
‘भाषा को सहूलियत’ से बरतने से क्या अभिप्राय है?
3 Marks Answers
1.
'बाहर भीतर, इस घर उस घर' पंक्ति के द्वारा कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि चिड़िया की उड़ान एक से दूसरे घर तक सीमित होती है, लेकिन कल्पना के पंख लगाकर कविता कभी समाज के घर-घर में प्रवेश करती है, तो कभी मानव मन के भीतर। इसी प्रकार, फूल की सुगंध एवं सौंदर्य एक दिन नष्ट हो जाते हैं, किंतु कविता बिना मुरझाए हर घर-द्वार पर और घर के बाहर भी अपने भावों और विचारों की सुगंध बिखेरती रहती है। बच्चे अपने-पराए के भेदभाव से रहित होकर कभी घर के भीतर तो कभी बाहर, और कभी एक घर से दूसरे घर में भागते फिरते हैं, और सबसे आत्मीयता स्थापित कर लेते हैं। कवि भी काव्य सृजन के समय सभी भेदों से ऊपर उठ जाता है। शब्दों के माध्यम से वह कभी अपने मन के,तो कभी बाह्य संसार के, कभी अपनों के, तो कभी परायों के भावों को अभिव्यक्ति प्रदान करता है ।
2. बच्चों के खेल की तरह कविता
भावों, विचारों
और शब्दों के खेल खेलती
है। बच्चों के खेल सीमाओं
और विधि-निषेधों से परे होते हैं , उसी प्रकार
काव्य सृजन भी स्वच्छंद रूप में होता है। भेदों
के बंधन से ऊपर उठकर सबको एक कर देने का मतलब बच्चे जानते
हैं, उसी प्रकार कवि का कविता
रचना का उद्देश्य
सकुंचित भेदों से ऊपर उठकर अपने रचनात्मक
संदेश द्वारा लोक हित को साधना है।
जिस प्रकार बच्चे अपने और पराए घरों के बीच कोई भेदभाव नहीं करते, उसी प्रकार कवि को भी काव्य रचना के क्षणों में समूचे विश्व के साथ आत्मीयता स्थापित करने की आवश्यकता है, ताकि अपनी कृति के माध्यम से वह अपना संदेश घर-घर तक और जन-जन तक पहुँचा सके।
इसके अलावा, जिस प्रकार बच्चों में विकास की असीम संभावनाएँ छिपी होती हैं, उसी प्रकार कविता में भी अर्थ की व्यापक संभावनाएँ हैं, जो भविष्य में उसकी प्रासंगिकता बनाए रखती हैं
3. फूल के सौंदर्य को देखकर कवि के हृदय में कविता खिल उठती है। फूल और कविता दोनों का सौंदर्य मनोरम और हृदयस्पर्शी होता है, किंतु कविता फूल से भी अधिक चेतन और आनंदमयी होती है। इसका कारण यह है कि फूल एक दिन मुरझा जाता है और अपनी गंध तथा रूप को खो देता है। किंतु, कविता जब एक बार शब्दों के रूप में अभिव्यक्ति प्राप्त कर लेती है, तो यह फिर कभी नहीं मुरझाती। यह नित नए-नए अर्थ ग्रहण करके विकसित होती रहती है और इस प्रकार अमर एवं अमिट हो जाती है। इस प्रकार फूलों की अपेक्षा कविता का सौंदर्य शाश्वत होता है और उसकी आनंद प्रदान करने की परिधि अधिक व्यापक होती है
4. जिस प्रकार
चिड़िया नीलगगन में उड़ान भरती है, उसी प्रकार
कविता भी कवि की कल्पना
के पंखों के सहारे उड़ान भरती है। लेकिन इन दोनों उड़ानों
में एक अंतर होता है। चिड़िया
की उड़ान एक स्थान एवं समय तक ही सीमित
होती है, जबकि कविता
में कवि की कल्पना की उड़ान पर देश-काल का कोई प्रतिबंध
नहीं होता। इसीलिए
कहा गया है- जहाँ न पहुँचे रवि,वहाँ पहुँचे कवि।
जिस प्रकार फूल खिलकर लोगों को सुगंध बाँटता है और अपने सौंदर्य से आनंद प्रदान करता है, उसी प्रकार कविता भी कवि के हृदय में खिलती है और फिर अपने कोमल भावों से संसार को आनंदित करती है। किंतु फूलों का खिलना एक निश्चित समय सीमा के लिए ही होता है और उसके पश्चात् वह मुरझा जाता है। लेकिन कविता एक बार खिलने के पश्चात् फिर फिर विनष्ट नहीं होती। वह नित नूतन अर्थ ग्रहण कर विकसित होती रहती है
5.
बच्चे खेल-खेल में सभी सीमाओं के बंधन और अपने-पराए का भेदभाव भूल जाते हैं। वे सभी घरों को अपने घर जैसा मानने लगते हैं और सबसे आत्मीयता पूर्ण व्यवहार दर्शाने लगते हैं। कविता भी शब्दों का खेल है। कविता देश-काल और नियमों के बंधन के बिना स्वच्छंद रूप से प्रवाहित होती है। कवि को अपने-पराए का भेद भूलकर लोक हित में काव्य सृजन करना चाहिए। यहाँ सब घर एक कर देने का तात्पर्य है -पारस्परिक भेदभाव को भुलाकर सबमें अपनत्व की अनुभूति करना। बच्चे और कवि दोनों में सबको चाहने या सबके लिए आत्मीय भाव प्रदर्शित करने का गुण विद्यमान होता है ।
6.
बात और भाषा के बीच अटूट संबंध है। वस्तुतः भाषा का उद्देश्य ही बात को सटीक ढ़ंग से संप्रेषित करना है। किंतु कभी-कभी कवि अपनी बात को प्रभावशाली तरीके से बताने के लिए घुमावदार भाषा का सहारा लेते हैं। वे उसे अलंकृत बनाकर उसके सौंदर्य में वृद्धि करना चाहते हैं। अनेक लोग भी उनके इस प्रयास की वाहवाही करने लगते हैं। किंतु, भाषा के चक्कर में फँसकर कवि अपनी मूल बात को सही प्रकार से व्यक्त नहीं कर पाते। पाठक या श्रोता भी उनके शब्द जाल में उलझ जाते हैं और काव्य के मूल अर्थ को समझने से वंचित रह जाते हैं।इस तरह ‘सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है’ ।
7.
जिस प्रकार एक शरारती बच्चा अपने मित्रों और बड़ों के साथ शरारतपूर्ण खेल खेलता है और उनकी पकड़ में नहीं आता, इसी प्रकार बात भी एक शरारती बच्चे की तरह कवि के साथ खेल खेलती है। कवि बात को इतने अलंकारों और भाषायी प्रयोगों से सजा देता है, कि बात रूपी शरारती बच्चा छिप जाता है और पाठकों या श्रोताओं को वह दृष्टिगोचर नहीं होता। कवि बात को प्रकट करना चाहता है, किंतु प्रशंसकों की व्यंग्यपूर्ण वाहवाही से प्रोत्साहित होकर वह उसे और अधिक ढ़कता जाता है। बात शरारती बच्चे की तरह कवि से खेलती रहती है। कवि अंत में हार मानकर कठिन भाषा युक्त कविता को ही स्थायी रूप प्रदान कर देता है, जिसमें मूल बात को समझना पाठकों के लिए अत्यंत दुरूह होता है। जब कवि अंत में पसीना पोंछ रहा होता है तो बात शरारती बच्चे की तरह खिलखिलाते हुए कवि से पूछती है- "क्या तुमने भाषा का अभी सरल एवं सहज प्रयोग करना नहीं सीखा?" इस प्रकार कवि स्पष्ट करते हैं कि जब कोई सरल बार एक बार उलझ जाती है, तो फिर अनेक प्रयास करने के बावजूद वह समझने योग्य नहीं रह जाती चाहे। वह एक शरारती बच्चे की तरह हाथों से फिसल जाती है। ।
8.
कवि शब्दों के चामत्कारिक प्रयोग के बल पर अपने पाठकों और श्रोताओं से वाहवाही की उम्मीद करता है। वह भाषा को प्रभावी बनाने के लिए शब्दाडंबर का आश्रय लेता है। वह सीधी सी सरल बात को नाना प्रकार के अलंकरणों से सजाता है और उसमें कृत्रिम सौंदर्य उत्पन्न करने का प्रयास करता है। इन भाषायी प्रयोगों से उसकी सरल बात अत्यंत पेचीदा यानी जटिल हो जाती है। कवि उस जटिलता को दूर करने के प्रयास में बात को और भी अधिक दुरूह बना देता है। लेकिन प्रशंसकों की व्यंग्यपूर्ण सराहना सुनकर उसे अपनी गलती का कोई ज्ञान नहीं हो पाता। इसके कारण कविता की जटिलता और भी अधिक बढ़ती चली जाती है और आखिरकार शब्दों के जाल में वह इस प्रकार उलझ जाती है कि उसका अर्थ पाठकों तक संप्रेषित नहीं हो पाता ।
9. भाषा में पेंच कसने का तात्पर्य है- कवि भाषा को प्रभावशाली एवं चामत्कारिक बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयोग करता है। वह शब्दों को घुमाता-फिराता है और तोड़ता-मरोड़ता है, जिससे सरल बात भी टेढ़ी हो जाती है और उसमें पेचीदगी अर्थात् जटिलता आ जाती है। कवि उस पेंच को खोलने के बजाय उसे और अधिक कसता जाता है अर्थात् बात को सरल बनाने के प्रयास में उसे और भी अधिक जटिल बनाता जाता है। इसका कारण है- प्रशंसकों की वाहवाही, जो इसके इस असफल प्रयास को व्यंग्यपूर्वक प्रोत्साहित करते रहते हैं। पेंच को अत्यधिक कसने से अंततः बात की चूड़ी मर जाती है। इसका तात्पर्य यह है कि शब्दों के जाल में सरल बात इस तरह उलझ जाती है कि उसकी कसावट और पैनापन समाप्त हो जाता है
10.
भाषा को सहूलियत से बरतने का अभिप्राय भाव एवं विचार के अनुसार सीधी, सरल एवं सहज भाषा के प्रयोग से है। भाषा मात्र एक माध्यम है और उसका वास्तविक उद्देश्य है- भावों और विचारों का संप्रेषण। किंतु व्यर्थ के शब्दाडंबर में फँसने से रचना अपना अर्थ पाठकों तक संप्रेषित करने में सफल नहीं हो पाती। कुछ लोग इस उलझाव को ही कविता की विशेषता मानकर इसकी वाहवाही करने लगते हैं। लेकिन इसके कारण बात का मूल प्रभाव और सौंदर्य नष्ट हो जाता है। वस्तुतः, अच्छी बात या अच्छी कविता के लिए भाषा के चक्कर में फँसकर अतिरिक्त परिश्रम करने की जरूरत नहीं होती। भाषा को सहजता से बरतने से यह काम सहूलियत के साथ हो जाता है।
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