Hindi Bhasha Ka Vaishwik Swaroop हिंदी का वैश्विक स्वरूप By Avinash Ranjan Gupta


हिंदी का वैश्विक स्वरूप
        हिंदी की वर्णमाला यानी अनपढ़ से शुरू होती है और ज्ञ यानी ज्ञानी बनाकर छोड़ती है। या हिंदी भाषा की सबसे बड़ी उपलब्धि है। हिंदी की वर्णमाला पूर्णतः वैज्ञानिक है और प्रत्येक ध्वनि के लिए अलग-अलग लिपि चिह्न इसकी विशिष्टता है। इसके अतिरिक्त इसके उच्चारण और लेखन में एकरूपता होने के कारण ही यह कालजयी हैं और भौगोलिक सीमाओं से परे पहुँच चुकी है। हिंदी की अद्वितीय आत्मसात एवं अंगीकार करने की प्रक्रिया ने ही इसे 310 करोड़ लोगों का चहेता बना दिया है। यूरापीय भाषाओं की तुलना में उर्दू, फारसी, तुर्की, अरबी शब्द हमारे ज्यादा नजदीक है। अंग्रेज़ी के प्रचलन में आ चुके शब्दों को अपनाने में भी हिंदी आगे ही है।
      बोलने और समझने वालों की संख्या की दृष्टि से हिंदी विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा है। परंतु सर्वेक्षण में हिंदी की अनेक बोलियों जैसे भोजपुरी, अवधी, हरियाणवी, छत्तीसगढ़ी, मैथिली, मगही इत्यादि को स्वतंत्र भाषा मानकर सूचीबद्ध करते हुए, विश्व में सबसे अधिक बोली जानी वाली भाषाओं की सूची में इसे चौथे स्थान पर रखा गया है। इस तरीके से यह तो सिद्ध हो ही जाता है कि वैश्विक स्तर पर हिंदी अपनी एक अलग पहचान बना ही चुकी है।
      अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी का संवर्धन करने तथा उसे संयुक्त राष्ट्र संघ में एक अधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिलाने के अपने मूल उद्देश्य को लेकर विश्व हिंदी सचिवालयअपने सीमित साधनों के साथ निरंतर प्रयासरत है। न्यूयार्क में 13-15 जुलाई 2007 को आयोजित आठवाँ विश्व हिंदी सम्मेलनइस दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रहा कि विश्व भर के हिंदी प्रेमी संयुक्त राष्ट्र संघ के सभागार में एकत्र हुए और हिंदी का सामूहिक शंखनाद विश्व के कोने-कोने तक पहुँचाया। सम्मेलन को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघके महासचिव श्री बान की मूनने कहा, ‘‘संसार के लोगों को एक-दूसरे के निकट लाने के लिए हिंदी समन्वय-सूत्र की तरह काम कर रही है। यह संसार की सभी संस्कृतियों के बीच एक सेतु है।’’  निश्चित ही श्री बान की मूनको हिंदी के विश्वव्यापी उज्ज्वल भविष्य का आभास हो चुका है और उन्हें हिंदी के तेज़ी से बढ़ते कदमों की आहटें भी सुनाई दे रही हैं
      हिंदी को विश्वभाषा व राष्ट्रसंघ की भाषा बनाने में कठिनाइयाँ विज्ञान और टेक्नोलॉजी की शब्दावली की है। अभी तक हमने जो शब्द गढ़े हैं उनमें अस्पष्टता, अस्वाभाविकता और अंग्रेज़ी की छाप है। वे शब्दकोश में तो जगह पा सकते हैं पर बोलचाल में उनका प्रवेश मुश्किल है। इसके लिए हमें शुद्धतावादी दृष्टिकोण छोड़ना होगा। विज्ञान व तकनीकी शब्दावली की दुरुहता दूर होते ही हिंदी अपने आप सर्वमान्य हो जाएगी। रूरत सिर्फ इतनी है कि हम इसे विज्ञान और वाणिज्य की भाषा बनाने की दिशा में सार्थक काम करें और सोचें कि हम हिंदी सीखने के इच्छुक देशों के लिए किस तरह लुभावनी, सरल और सुगम हिंदी बना सकते हैं
      इस पुनीत कार्य को सुचारु और संगठित रूप से पूरा करने का कार्यभार विश्व हिंदी सचिवालय  मॉरीशस ने भी लिया है। वास्तव में विश्व हिंदी सचिवालयकी स्थापना का विचार सबसे पहले मॉरीशस के राष्ट्रपिता और प्रथम प्रधानमंत्री सर शिवसागर गुलामने भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की उपस्थिति में भारत के नागपुर शहर में 10 जनवरी 1975 को आयोजित प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन में रखा था। उन्होंने कहा था कि हिंदी भारत के लिए राष्ट्रभाषा है लकिन हमारे लिए यह अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। आज मॉरीशस और भारत की साझेदारी में विश्व हिंदी सचिवालयमॉरीशस में कार्यरत है। विश्व हिंदी सचिवालयने हिंदी को विश्वव्यापी बनाने का अपना अधिकारिक अभियान 11 फरवरी 2008 से प्रारंभ किया था। संपूर्ण विश्व में चल रही हिंदी की गतिविधियों से हिंदी प्रेमियों को समय-समय पर अवगत कराने के लिए सचिवालय की ओर से त्रैमासिक विश्व हिंदी समाचारका प्रकाशन मार्च 2008 से आरंभ किया गया था। इस पत्र के माध्यम से मॉरीशस, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाड़ा, नीदरलैंड, दक्षिण अफ्रिका, सिंगापुर, सिडनी, जमैका, उक्रेन, जापान, हंगरी, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, ईराक व साऊदी आदि देशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार से जुड़ी संस्थाओं द्वारा हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति के लिए किए जा रहे कार्यों की संक्षिप्त जानकारी विश्वव्यापी हिंदी प्रेमियों तक पहुँचाने का प्रयास जारी है।
      विश्व के अनेक देशों के विश्वविद्यालयों में हिंदी शिक्षा दी जाती है, जिनमें मॉरीशस, फीजी, हॉलेंड, जर्मनी, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, स्ट्रेलिया, थाईलैंड, उजबेकिस्तान, तजाकिस्तान, क्रोएशिया, कनाडा, चीन, जापान, रोमानिया, ब्रल्गारिया, रूस, हंगरी, पोलैंड आदि देश प्रमुख है। अकेले अमेरिका के 80 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी शिक्षण की सुविधा उपलब्ध है। जिन देशों में हिंदी शिक्षण को औपचारिक शिक्षा व्यवस्था में स्थान नहीं मिला, वहाँ भारतीय समुदाय की स्वंयसेवी संस्थाए हिंदी का अध्यापन करती है। इसके अतिरिक्त हिंदी को नामचीन बनाने के उद्देश्य से 10 जनवरी, 1975 को प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलनका शुभारंभ नागपुर, भारत में हुआ था। अतः, इस ऐतिहासिक तिथि को याद रखने के साथ ही पूरी दुनिया में हिंदीमय वातावरण बनाने के लिए प्रतिवर्ष 10 जनवरी का दिन विश्व हिंदी दिवसके रूप में मनाने का निर्णय विदेश मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा सन् 2006 में लिया गया था। अब हर साल हिंदी प्रेमी 14 सितंबर को भारत में हिंदी दिवसऔर 10 जनवरी को पूरे विश्व में विश्व हिंदी दिवसमनाने लगे हैं
      आज हिंदी फिल्मों और धारावाहिकों ने भी हिंदी भाषा के विकास में अहम भूमिका निभाई है और लगभग 120 देशों में भारतीय चैनलों का प्रसारण इस बात का पुख्ता सबूत है कि हिंदी की परिधि हर दिन विस्तृत होती जा रही है। आश्चर्य नहीं होगा जब योगकी भांति हिंदी भी एक दिन अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में अपना परचम लहराएगी।










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