FIRAK GORAKHPURI – RUBAIYAAN, GAZAL फ़िराक गोरखपुरी 1. रुबाइयाँ 2. गज़ल Extra Qquestions Answers


फ़िराक गोरखपुरी
3 Marks Questions
1.    कवि किसके ख्याल में चुपके-चुपके रोता है? ‘गज़लके आधार पर कवि की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
2.    कवि ने गज़ल में वातावरण की सृष्टि किस प्रकार की है?
3.    बच्चे के ठुनकने का क्या कारण है? माँ अपने बच्चे को किस तरह मनाती है?
4.    माँ अपने बच्चे को कैसे हँसाती है? बच्चे की प्रतिक्रिया के विषय में बताइए?
5.    काव्य-सौंदर्य  स्पष्ट  कीजिए।
दीवाली  की  शाम  घर  पुते  और  सजे
चीनी  के  खिलौने  जगमगाते  लावे
वो  रूपवती  मुखड़े  पै  इक  नर्म  दमक
बच्चे  के  घरौंदे  में  जलाती  है  दिए।।
6.    खुद का परदाखोलने से क्या आशय है? ‘मेरा पर्दा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं’ – पंक्ति का भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।   
7.    निम्नलिखित  शेर  को  पढ़कर  दिए  गए  प्रश्नों  के  उत्तर  दीजिए। 
तारे  आँखें  झपकावें  हैं  ज़र्रा-ज़र्रा  सोये  हैं
तुम  भी  सुनो  हो  यारो!  शब  में  सन्नाटे  कुछ  बोले  हैं।
()  ज़र्रा-ज़र्रा  सोये  हैं    से  कवि  का  क्या  तात्पर्य  है?
()  कवि  किसे  संबोधित  करता  है  और  क्यों?
()  इस  शेर  के  भाषिक  सौंदर्य  पर  प्रकाश  डालिए।
8.    काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
सदके फ़िराक एज़ाज़े-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज़ इन गज़लों के परदों में तोमीरकी गज़लें बोले हैं।     
9.    शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर क्या भाव व्यंजित करना चाहता है?
10.                       कवि ने दीपावली की शाम का वर्णन किस प्रकार किया है? कविता के आधार पर लिखिए।


3 Marks Answers
1.    कवि को सांसारिकता का ख्याल है क्योंकि वह एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज के व्यंग्य से डरता है। वह अपने प्रेम को दुनिया के लिए मज़ाक या उपहास का विषय नहीं बनाना चाहता। इसी कारण वह चुपके-चुपके रो लेता है। कवि प्रेम के विरह से पीड़ित है। उसे संसार की प्रवृति से भी भय है। वह अपने वियोग को चुपचाप सहन करता है ताकि बदनाम हो
2.    बसंत ऋतु में कलियों की कोमल पंखुड़ियाँ नवरस से भरी हुई हैं और वे अपनी गाँठें खोल रही हैं अर्थात उद्यान में फूलों के रंगों की खुशबू उड़ाने के लिए अपने पंखों को खोलती हैं। उस समय ऐसा प्रतीत होता है कि रंग और सुगंध एक साथ आकाश में उड़ जाने के लिए पंख फड़फड़ाने लगे हों। फूलों और कलियों की मोहक गंध सारे वातावरण को सुगंध से सराबोरकर देती है।
3.    जब बच्चा आसमान में चाँद को देखता है तो चाँद को देखकर उस पर मोहित हो जाता है। वह उसे लेने की ज़िद पकड़ लेता है। जब बच्चा नहीं मानता तो माँ उसे दर्पण में चाँद की परछाई दिखाकर उसे बहलाने का प्रयत्न करती है और उसे कहती है कि दर्पण में चाँद उतर आया है।
4.    माँ अपने बच्चे को कभी हाथों पर झुलाती है तो कभी उसे गोद में भरकर हवा में उछाल देती है, जिससे बच्चा हँसने लगता है। वह माँ की गोद में खेलकर प्रसन्न होता है। जब वह उसे उछालती है तो वह प्रसन्नता से किल-कारी मारने लगता है तथा उसकी खिलखिलाहट भरी हँसी सारे वातावरण को गुंजायमान कर देती है। ऐसा लगता है मानो बच्चे की खिलखिलातीहँसी के साथ वातावरण भी हँसने लगा हो।
5.    काव्य-  सौंदर्य  :
1.  प्रस्तुत  रुबाई  पाठ्यपुस्तक  आरोह  भाग-2’  में  संकलित  कवि  फ़िराक
गोरखपुरी  द्वारा  रचित  रुबाइयों  से  अवतरित  है।
2.  इसमें  दीवाली  के  अवसर  हुई  रौनक  का  स्वाभाविक  चित्रण  किया  है  तथा
माँ  की  ममता  का  सुंदर  वर्णन  है।
3.  मिश्रित  भाषा  का  प्रयोग  है।
4.  तत्सम,  तद्भव  एवं  विदेशी  शब्दावली  है।
5.  अभिधात्मक  शैली  का  चित्रांकन  है।
6.  दृश्य  बिंब  है  -  घर  पुते  और  सजे,  चीनी  के  खिलौने  जगमगाते,  रूपवती
मुखड़े  पै  इक  नर्म  दमक,  घरौंदे  में  जलाती  है  दिए।।
7.  प्रसाद  गुण  है।  रुबाई  छंद  है।
6.    खुद का परदाखोलने का आशय है- अपनी कमियों या दोषों को स्वयं ही प्रकट करना अर्थात अपनी बुराइयों तथा अवगुणों को उजागर करना। कवि इन पंक्तियों में कहता है कि इस समाज में दूसरों को वही लोग बदनाम करते हैं, जो स्वयं पहले से ही बदनाम होते हैं और ऐसा करके वे दूसरों को बदनाम नहीं करते, बल्कि अपने रहस्यों को ही खोल कर बताते हैं
7.    काव्य-  सौंदर्य:
()  ज़र्रा-ज़र्रा  सोये  हैं    पंक्ति  से  कवि  का  तात्पर्य  है  कि  जब  रात  हो  जाती  है  तो  सृष्टि  का  कण-कण  शांत  होकर  सो  जाता  है।  रात  के  गहन  अंधकार  में  चारों  ओर  सन्नाटा  छा  जाता  है।
(
)  कवि  दोस्तों  को  संबोधित  करता  हुआ  कहता  है  कि  रात्रि  में  चारों  ओर  छाया  हुआ  सन्नाटा  कुछ  रहस्य  कहता  है।
(
)  ज़र्रा-ज़र्रा  में  पुनरुक्ति  प्रकाश  अलंकार  है।  सन्नाटे  का  बोलना  में  मानवीकरण  तथा  विरोधाभास  अलंकार  है।  उर्दू  शब्दावली  है।  प्रसाद  गुण  है  तथा  गज़ल  छंद  का  प्रयोग  है। 
8.    काव्य- सौंदर्य:
1.  प्रस्तुत  पंक्तियाँ  पाठ्यपुस्तक  आरोह  भाग-2’  में  संकलित  कवि  फ़िराक गोरखपुरी  द्वारा  रचित  गज़ल  से  अवतरित  है।
2.  इन  पंक्तियों  में  कवि  ने  प्रतिष्ठित  शायर  मीर  के  प्रति  श्रद्धा-भाव  अभिव्यक्त  किए  हैं।  कवि  की  शायरी  प्रसिद्ध  कवि  मीर  के  समान  उत्कृष्ट  कोटि  की  है।
3.  भाषा  उर्दू,  फ़ारसी  एवं  साधारण  बोलचाल  की  है।
4.  बिंब  योजना  सुंदर  है।
5.  भावपूर्ण  शैली  का  प्रयोग  है।
6.  ग़ज़ल  छंद  का  प्रयोग  है।
9.    शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर यह भाव प्रकट करना चाहता है कि रक्षाबंधन का पावन पर्व सावन मास में आता है। सावन में आकाश में घटाएँ छाई होती हैं तथा उनमें बिजली चमकती रहती है। राखी के लच्छे बिजली की चमक की तरह चमकते हैं। बिजली की चमक रिश्तों की पवित्रता को व्यक्त करती है। इस प्रकार सावन की घटा का जो संबंध बिजली से है, वही संबंध भाई का बहन से है   
10.                       दीपावली के पावन पर्व की संध्या के समय सब घर लिपे-पुते, साफ-सुथरे तथा सजे-धजे होते हैं। घर में रखे जगमगाते चीनी के सुंदर खिलौने बच्चों को खुश कर देते हैं। माँ दीपावली की संध्या को अपने नन्हें बच्चे के मिट्टी के छोटे घर में दीपक जलाती है। नन्हें बच्चे का मिट्टी का छोटा-सा घर भी दीपक की रोशनी से जगमगा उठता है
             



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