CAMERE ME BAND APAHIJ रघुवीर सहाय कैमरे में बंद अपाहिज Extra Questions Answers
कैमरे में बंद अपाहिज
3 Marks Questions
1.
‘परदे पर वक्त की कीमत है’ कहकर कवि ने पूरे साक्षात्कार के प्रति अपना नज़रिया किस रूप में रखा है?
2.
यदि शारीरिक रूप से चुनौती का सामना कर रहे व्यक्ति और दर्शक, दोनों एक साथ रोने लगेंगे, तो उससे प्रश्नकर्ता का कौन-सा उद्देश्य पूरा होगा?
3.
‘हम समर्थ शक्तिवान और हम एक दुर्बल को लाएँगे’ पंक्ति के माध्यम से कवि ने क्या व्यंग्य किया है?
4.
कैमरे में बंद अपाहिज करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है – विचार कीजिए।
5.
कविता में कुछ पंक्तियाँ कोष्ठकों में रखी गई हैं-आपकी समझ से इसका क्या औचित्य है?
6.
क्या
मीडियाकर्मी सफल होता है‚ यदि नहीं तो क्यों?
7.
आप क्या अपाहिज हैं?
तो आप क्यों अपाहिज हैं? पंक्ति द्वारा कवि किस विशिष्ट अर्थ की अभिव्यक्ति करने में सफल हुआ है?
तो आप क्यों अपाहिज हैं? पंक्ति द्वारा कवि किस विशिष्ट अर्थ की अभिव्यक्ति करने में सफल हुआ है?
8.
रघुवीर सहाय की काव्य कला की विशेषताएँ लिखिए ।
9.
अंधे को अंधा कहना किस मानसिकता का परिचायक है? कविता में यह मनोवृति किस प्रकार उद्घाटित हुई है?
10.
दूरदर्शन
पर एक अपाहिज का साक्षात्कार किस उद्देश्य से दिखाया जाता है?
3 Marks Answers
1.
परदे पर वक्त की कीमत है- कहकर कवि मीडियाकर्मी के उस अहं को दर्शाने का प्रयास कर रहा है, जिससे वह टीवी जैसे संचार माध्यम में कार्य करने के कारण ग्रस्त है। इसीलिए वह स्वयं को शक्तिशाली समझता है, तो अपाहिज को दुर्बल। उसके लिए अपाहिज के दुःख-दर्द,आँसुओं और मान-अपमान की कोई कीमत नहीं। उसके लिए तो केवल उस वक्त की कीमत है, जिससे उसके चैनल को भरपूर टीआरपी, पैसा और प्रसिद्धि मिले। इसलिए,कार्यक्रम को अधिक से अधिक रोचक एवं लोकप्रिय बनाने के लिए वह संवेदनशीलता को भूलकर अमानवीय हथकंडे अपनाने लगता है।
2.
यदि शारीरिक रूप से चुनौती का सामना कर रहे व्यक्ति और दर्शक, दोनों एक
साथ रोने लगेंगे, तो उससे प्रश्नकर्ता अपने व्यावसायिक
उद्देश्य की प्राप्ति में सफल हो जाएगा, क्योंकि ऐसा होने से ज्यादा से ज्यादा लोग
कार्यक्रम को देखने के लिए आकर्षित होंगे।
इससे उसके
चैनल की टीआरपी बढ़ेगी, उसे प्रसिद्धि मिलेगी और इन सबके कारण चैनल
को भरपूर पैसा मिलेगा। अपने इसी
व्यावसायिक हित को साधने के लिए मीडियाकर्मी संवेदनशीलता और मानवीयता को ताक पर
रखकर विकलांग व्यक्ति के दुखों को अपने तीखे और कठोर प्रश्नों से क्रूरतापूर्वक
कुरेदने लगता है।
3.
‘हम समर्थ शक्तिवान’ पंक्ति के माध्यम से कवि ने लोकतांत्रिक देश में
मीडिया के बढ़ते वर्चस्व के कारण मीडियाकर्मियों की अहं भावना को अभिव्यक्त किया है। उनका कथन 'हम एक दुर्बल को लाएँगे’ उनकी उस निम्न
मानसिकता को दर्शाता है, जिसके अनुसार उन्हें किसी दुखी एवं लाचार विकलांग
व्यक्ति को टीवी स्टूडियो में लाकर उससे अमानवीय और सहानुभूति विहीन प्रश्न पूछने
में किसी भी लज्जा और हिचकिचाहट का अनुभव नहीं होता।
4.
कैमरे में बंद
अपाहिज कविता के
माध्यम से कवि
ने मीडियाकर्मियों के
चेहरे पर लगे
करुणा के मुखौटे
को उतारकर उसके
पीछे छिपी संवेदनहीनता
एवं क्रूरता को
पाठकों के सामने
बेनकाब किया है। प्रश्नकर्ता
सामाजिक उद्देश्य से
युक्त कार्यक्रम के
नाम पर अपाहिज
व्यक्ति से बेतुके
सवाल पूछता है
और उसे इशारे
करता है, ताकि
उसके दुःख-दर्द को
कुरेदकर उसके चंद
करुणापूर्ण शब्द और
उसका अश्रुपूर्ण रुदन
दर्शकों को दिखा
सके और उसका
चैनल लोकप्रियता और
प्रसिद्धि प्राप्त कर सके। दरअसल, उसे
अपंग व्यक्ति के
निजी सुख-दुःख से
कोई सहानुभूति नहीं है।
5.
भावों
को प्रभावशाली बनाने
के लिए कवि ने कोष्ठकों
के अंतर्गत अप्रत्यक्ष
कथनों का काव्य
में नूतन प्रयोग
किया है। इससे पहले ’कोष्ठांकित’
वाक्यों का प्रयोग
प्रायः नाटक आदि गद्य लेखन में ही होता था। इन कोष्ठकों में लिखी पंक्तियों
के द्वारा कवि ने अलग-अलग लोगों को संबोधित किया गया है। जैसे–
कैमरामैन के लिए–
• कैमरा दिखाओ इसे बड़ा-बड़ा
• कैमरा बस करो, नहीं हुआ रहने दो, परदे पर वक्त की कीमत है
अपाहिज व्यक्ति के लिए–
• वह अवसर खो देंगे?
• बस थोड़ी कसर रह गई।
दर्शकों के लिए–
• हम खुद इशारे से बताएँगे क्या ऐसा?
• यह प्रश्न पूछा नहीं जाएगा
इस प्रकार के कोष्ठांकित वाक्यों का प्रयोग कर कवि कविता के संदेश को पाठकों तक पूरी तरह संप्रेषित करने में सफल रहे हैं।
6.
मीडियाकर्मी विकलांग व्यक्ति के चंद आँसू, सिसकियाँ या उसके हृदय के कुछ करुण उदगार निकलवा पाने में सफल नहीं होता क्योंकि अनेक बार दुःखी व्यक्ति अपने दुःख से इतना अभिभूत हो जाता है कि वह अभिव्यक्तिशून्य हो जाता है और इस कारण अपने दुःख को शीघ्र उचित प्रकार से व्यक्त नहीं कर पाता। इसके अलावा, मीडियाकर्मी के प्रश्न इतने बेतुके हैं कि वह उन पर मात्र मौन ही रह सकता है। उसे बोलने और रोने के लिए उकसाने वाले मीडियाकर्मी के भद्दे एवं अमानवीय इशारे भी असफल रह जाते हैं।
7.
विकलांगता के शिकार व्यक्ति से कुछ हृदयस्पर्शी शब्द बुलवाने या उसे रो पड़ने
के लिए मजबूर करने के लिए मीडियाकर्मी उसके दुःख को कुरेदने की कोशिश करता है और
उससे पूछता है- आप क्या अपाहिज हैं? तो आप क्यों अपाहिज हैं? इस पंक्ति
में पूछे गए प्रश्न के माध्यम से कवि ने मीडियाकर्मी के चालाक और बनावटी विनम्रतापूर्ण
व्यवहार की पाठकों के समक्ष व्यंग्यपूर्ण शैली में पोल खोली है। कवि ने
करुणा और पीड़ा के उन सौदागरों पर कटाक्ष किया है, जो दूसरों की लाचारी और दुखों को जानबूझकर
उभारते हैं, जिससे कि कार्यक्रम रोचक बन जाए और दर्शक उसे देखने के लिए चैनल से चिपके रहें।
8.
रघुवीर सहाय ने मीडिया की संवेदनशून्य मानसिकता को सरल एवं सहज भाषा में प्रभावी रूप से अभिव्यक्त किया है। उन्होंने बोलचाल की भाषा के शब्द प्रयुक्त किए हैं, जैसे– बनाने के वास्ते‚ संग रुलाने हैं आदि। इस सपाटबयानी और व्यंग्यात्मक सैली से उनका काव्य मार्मिक बन गया है। कवि ने लक्षणा शब्दशक्ति के माध्यम से सांकेतिकता का प्रयोग किया है, जैसे- परदे पर वक्त की कीमत है। कोष्ठकों में लिखे अप्रत्यक्ष कथन विषय को नाटकीय पुट प्रदान करते हैं। कवि ने अनेक दृश्य बिंब भी शब्दों के द्वारा प्रस्तुत किए हैं, जैसे– फूली हुई आँख की एक बड़ी तस्वीर। मुक्त छंद में रचित होने के बाद भी उनके काव्य में प्रवाहशीलता एवं स्वाभाविकता का गुण दृष्टिगोचर होता है।
9.
अंधे को अंधा कहना क्रूर एवं अमानवीय मानसिकता का परिचायक है। व्यावसायिक सफलता के लिए उतावला मीडियाकर्मी किसी तरह विकलांग व्यक्ति के आँसू, सिसकियाँ या कुछ शब्द निकलवाना चाहता है, ताकि कार्यक्रम को लोकप्रिय बनाया जा सके। कविता में यह मनोवृत्ति उद्घाटित करते हुए साक्षात्कारकर्ता विकलांग व्यक्ति को बार-बार अपाहिज कहकर उसे उसके दुःख एवं अक्षमता की याद दिलाता है, जो कि अत्यंत निर्मम, संवेदनाशून्य एवं अमानवीय व्यवहार है।
10.
'सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम' कहकर मीडियाकर्मी यह सिद्ध करना चाहता है कि उसे
अपाहिज व्यक्ति से गहरी संवेदना है और उसकी पीड़ा को दर्शकों तक पहुँचाकर उसने
अत्यंत मानवीय एवं सामाजिक कार्य किया है।
किंतु, दूरदर्शन पर एक
अपाहिज के साक्षात्कार का उद्देश्य उसके प्रति सहानुभूति व्यक्त करना
नहीं है, बल्कि उसके
दुःख का सार्वजनिक प्रदर्शन करके दर्शकों की करुणा को जागृत कर अपना व्यावसायिक
हित साधना है। कार्यक्रम
के अंत में 'अब
मुसकुराएँगे हम'- कहकर
मीडियाकर्मी अपाहिज के दुःख-दर्द से द्रवित होने के स्थान पर मुस्कराता है और
अपनी पोल खुद खोलता है। अंत में उसके मुख से ‘धन्यवाद’ कहलवाकर कवि ने मानो सूचना तंत्र की संवेदनहीनता
पर एक तीखा व्यंग्य प्रहार किया है।
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