बचपन की पढ़ाई शिखर की चढ़ाई By Ajeem Premji An Article
बचपन की पढ़ाई शिखर की चढ़ाई
अज़ीम प्रेमजी
एक बच्चा अपने शुरूआती वर्षों
के दौरान जो अनुभव पाता है, जो क्षमताएँ विकसित
करता है, उसी से दुनिया को लेकर उसकी समझ निर्धारित
होती है और यह तय होता है कि वह आगे चलकर कैसा इंसान बनेगा।
भारत में कई तरह के स्कूली विकल्प
हैं। ऐसे में यह तय करना मुश्किल
है कि आमतौर पर एक बच्चे के स्कूल के संबंध में क्या अनुभव रहते हैं,
लेकिन मैं अलग-अलग
तरह के स्कूलों
से इतर भारत के स्कूल जाने वाले बच्चों के अनुभवों में एक खास तरह की समानता देखता हूँ। मैं स्कूली अनुभवों
के तीन महत्वपूर्ण
पहलुओं पर ध्यान दिलाना चाहूँगा, जिनसे यह निर्धारित होता है कि एक बच्चा बड़ा होकर किस तरह का इंसान बनेगा। पहली बात, एक इंसान के तौर पर बच्चे का अनुभव,
दूसरी बात, पठन-पाठन की प्रक्रिया, तीसरा स्कूल के दुनिया
के साथ जुड़ाव
को बच्चा किस तौर पर लेता है। इस आधार पर हम यह देखने की कोशिश करते हैं कि हमारे ज्यादातर स्कूलों
की वास्तविकता क्या है? बच्चा दिन में एक नियत अवधि के दौरान ही स्कूल में रहता है। मोटे तौर पर देखा जाए तो स्कूल एक कंक्रीट
की बनी इमारत होती हैं,
जहाँ कमरों में डेस्क और बेंच एक के पीछे एक करीने से सजी होती है। हालाँकि, कुछ कम सौभाग्यशाली बच्चे ऐसे स्कूलों
में भी जाते हैं, जहाँ शायद उन्हें यह बुनियादी व्यवस्था
न मिले, लेकिन जगह का आकार और इसका इस्तेमाल वहाँ भी इसी तरीके से होता है। बच्चा दिन का जितना समय स्कूल में गुज़ारता
है, उसे पीरियड्स
में बाँट दिया जाता है। हर पीरियड
किसी खास विषय के लिए निर्धारित होता है और हफ्ते में एक-दो पीरियड
ऐसे भी हो सकते हैं,
जिनमें बच्चा खेलकूद
या दूसरी गतिविधियों
में हिस्सा ले सकता है। उससे खास तरह के परिधान में स्कूल आने की उम्मीद
की जाती है। हर समय उसे यह बताया जाता है वह कहाँ पहुँच सकता है,
उससे क्या करने की उम्मीद
है और वह इसे कैसे कर सकता है। किसी कारणवश यदि वह कुछ अलग करने की सोचता है, चाहे वह पड़ोसी लड़के से बातचीत
करना चाहता हो या क्लास से बाहर जाना चाहता हो, तो इसके लिए उसे इजाज़त लेनी पड़ती है। अलग-अलग स्कूलों
की प्रवृत्ति के अनुसार इन नियमों के उल्लंघन पर अध्यापकों द्वारा
अलग-अलग सज़ा निर्धारित
होती है। इसके लिए या तो उसको मार पड़ सकती है या जोरदार
डाँट पिलाई जा सकती है अथवा और कुछ नहीं तो उसके माता-पिता को एक नोट भेजा जा सकता है। संक्षेप में कहें तो बच्चे के लिए स्कूल एक ऐसी जगह है जहाँ उसे कठोर अनुशासन
व नियम-कायदों का पालन करना होता है। बच्चा दुनिया
के बारे में शुरूआती पाठों में से एक यह सबक भी सीखता है कि दुनिया
कुछ नियम-कायदों से नियंत्रित होती है। बच्चे से यह उम्मीद की जाती है कि वह बिना कोई सवाल किए इनका पालन करे। यदि वह इनमें से किसी नियम को तोड़े तो सज़ा के लिए तैयार रहे। आप सफल हैं यदि इन सभी नियमों
को बिना किसी परेशानी से पालन कर सकते हैं।
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