आत्मपरिचय, दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! Aatmaparichay, Ek Geet हरिवंश राय बच्चन 1. आत्मपरिचय 2. एक गीत Extra Qquestions Answers


आत्मपरिचय, दिन  जल्दी-जल्दी  ढलता  है!
3 Marks Questions
1.    कवि मस्ती में डूबकर मन के गीत क्यों गाता रहता है?
2.    कवि संसार की किस चीज़ से प्रभावित नहीं होता?
3.    कवि किस चीज़ का भार लिए अपने कंधों पर घूम रहा है तथा किस चीज़ ने उनके मन को झंकृत कर दिया है?
4.    कवि और संसार में किस प्रकार का संबंध है? वह संसार को क्या संदेश देना चाहता है?
5.    कवि को संसार अपूर्ण क्यों लगता है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
6.    जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं’ – पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
7.    कौन-सा विचार पथिक के पाँवों को कमज़ोर कर देता है? कवि हरिवंश-राय बच्चन के गीत के आधार पर उत्तर दीजिए।
8.    बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे?   
9.    आत्मपरिचयकविता के मुख्य कथन का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
10.                       निम्नलिखित  काव्यांश  के  आधार  पर  पूछे  गए  प्रश्नों  के  उत्तर  दीजिए-
दिन  जल्दी-जल्दी  ढलता  है!
हो  जाए    पथ  में  रात  कहीं,
मंजिल  भी  तो  दूर  नहीं-
यह  सोच  थका  दिन  का  पंथी  भी  जल्दी-जल्दी  चलता  है।
(1)  काव्यांश  का  भाव  सौंदर्य  स्पष्ट  कीजिए।  (1)
(2)  काव्य  की  भाषा  संबंधी  दो  विशेषताएँ  लिखिए।  (1)
(3)  अलंकार  एवं  बिंब  विधान  स्पष्ट  कीजिए।  (1)


3 Marks Answers
1.    प्रेम रूपी मदिरा को पी लेने के कारण कवि इसी में मग्न रहता है। उसने कभी संसार की परवाह नहीं की। उसे इस संसार का बिल्कुल भी ध्यान नहीं है। संसार के लोगों की प्रवृत्ति है कि वे उनको पूछते हैं जो संसार के अनुसार चलते हैं तथा उनका गुणगान करते हैं। यह स्वार्थ के नशे में डूबकर औरों को अनदेखा कर देता है लेकिन कवि अपनी मस्ती में डूबकर मन के गीत गाता रहता है अर्थात वह वही करता है जो उसका मन कहता है।
2.    कवि पृथ्वी पर व्याप्त धन-ऐश्वर्य तथा शान--शौकत से तनिक भी प्रभावित नहीं होता। हर व्यक्ति वैभव, समृद्धि, भोग-सामग्री की तरफ भागता है। हर व्यक्ति अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए भाग रहा है। कवि कहता है कि जिस पृथ्वी पर यह संसार झूठे धन-ऐश्वर्य खड़ा करता है, वह ऐसी ऐश्वर्य परिपूर्ण पृथ्वी को पग-पग पर ठुकरा देता है। यह धन-वैभवकवि को तनिक भी विचलित नहीं कर सकता।
3.    कवि सांसारिक जीवन का संपूर्ण भार अपने कंधों पर लेकर घूम रहा है। इस सारे भार को उठाने के पश्चात भी वह जीवन में प्यार लिए घूम रहा है अर्थात जीवन की समस्याओं के बावजूद भी कवि के जीवन में प्यार है। कवि का  जीवन सितार की तरह हैं जिसे किसी ने उसके हृदय रूपी वीणा को प्रेम से छूकर झंकृत कर दिया। फलस्वरूप उसका जीवन संगीत से भर उठा है। वह उसी झंकृत वीणा की साँसों को लिए दुनिया में घूम रहा है।
4.    कवि और संसार का कोई संबंध नहीं है। उसकी राह कोई और है तथा संसार की कोई और। वह जाने प्रतिदिन कितने जग बना-बना कर मिटा देता है। कवि के अनुसार यह संसार इस धरती पर सुख के साधन एकत्रित करता है परंतु कवि हर कदम पर धरती को ठुकराया करता है अर्थात वह जिस संसार में रह रहा है, उसी के प्रतिकूल आचार-विचार रखता है। कवि संसार को मस्ती का संदेश देना चाहता है। ऐसी मस्ती जिसमें संपूर्ण संसार मदमस्त होकर आनंद विभोर हो उठे।
5.    कवि को संसार अपूर्ण लगता है क्योंकि यह समस्त संसार स्वार्थी है। यहाँ हर कोई अपनी स्वार्थ-पूर्ति में डूबा हुआ है। यह संसार केवल उन्हीं लोगों की जयकार करता है जो उसकी इच्छानुसार व्यवहार करते हैं। कवि निरर्थक कल्पनाओं में विश्वास नहीं रखता क्योंकि यह संसार कभी भी किसी की इच्छाओं को पूर्ण नहीं कर पाया है। कवि भावनाओं को प्रमुखतादेता है। वह वर्तमान संसार को उसकी शुष्कता एवं नीरसता के कारण नापसंद करता है। बार-बार वह अपनी कल्पना का संसार बनाता है तथा प्रेम में बाधक बनने पर उन्हें मिटा देता है। वह प्रेम को सम्मान देने वाले संसार की रचना करना चाहता है।
6.    जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं’ – पंक्ति का आशय है कि इस संसार में लोगों ने जीवन-सत्य को जानने की कोशिश की, परंतु कोई भी सत्य नहीं जान पाया। इस कारण हर व्यक्ति नादानी करता दिखाई देता है। नादान यानी मूर्ख व्यक्ति सांसारिक मायाजाल में उलझ जाता है। मनुष्य इस मायाजाल को निरर्थक मानते हुए भी इसी चक्कर में फँसारहता है। संसार असत्य है मनुष्य इसे सत्य मानने की नादानी कर बैठता है और मोक्ष के लक्ष्य को भूलकर संग्रह-वृत्ति में पड़ जाता है। इसके विपरीत  कुछ ज्ञानी लोग भी समाज में रहते हैं जो मोक्ष के लक्ष्य को नहीं भूलते हैं अर्थात संसार में हर तरह के लोग रहते हैं।
7.    कवि एकाकी जीवन व्यतीत कर रहा है। शाम के समय उसके मन में  विचार उठता है कि उसके आने के इंतज़ार में व्याकुल होने वाला कोई नहीं है। अत: वह किसके लिए तेजी से घर जाने की कोशिश करे। कवि कहता है कि जब-जब पथिक के हृदय में यह विचार उठता है कि कौन उसके लिए व्याकुल है अर्थात कौन उसकी प्रतीक्षा कर रहा है तो यह विचार उसके पाँवों को कमज़ोर कर देता है। इससे पथिक के हृदय में अपार व्याकुलता भर जाती है।  
8.    पक्षी दिनभर भोजन की तलाश में भटकते हैं। उनके बच्चे अपने माता-पिता से बिछुड़ कर अपने-अपने घोंसलों में यही आशा मन में लिए रहते होंगे कि वे कब लौटकर आएँगे? कब उनके माता-पिता उनके लिए दाना लाएँगे और कब उनको भोजन कराकर उनकी भूख शांत करेंगे। वे अपने माता-पिता का स्नेहिल स्पर्श पाने के लिए प्रतीक्षा करते हैं। छोटे बच्चों को माता-पिता का स्पर्श उनकी गोद में बैठना, उनका प्रेम-प्रदर्शन भी असीम आनंद देता है। इन सबकी पूर्ति के लिए बच्चे अपने नीड़ों से झाँकते रहे होंगे।
9.    कवि कहता है कि यद्यपि वह सांसारिक कठिनाइयों से जूझ रहा है, फिर भी वह इस जीवन से प्यार करता है। वह अपनी आशाओं और निराशाओं से संतुष्ट है। वह संसार से मिले प्रेम की परवाह नहीं करता क्योंकि संसार उन्हीं लोगों की जयकार करता है जो उसकी इच्छानुसार व्यवहार करते हैं। वह अपनी धुन में रहने वाला व्यक्ति है। कवि संतोषी प्रवृत्ति का है। वह अपनी वाणी के जरिए अपना आक्रोश व्यक्त करता है। उसकी व्यथा शब्दों के माध्यम से प्रकट होती है तो संसार उसे गाना समझता है। वह संसार को अपने गीतों, द्वंद्वों के माध्यम से प्रसन्न करने की कोशिश करता है। कवि सभी को सामंजस्य बनाए रखने के लिए कहता है।
10.           (1)  प्रस्तुत  काव्यांश  में  कवि  ने  समय  की  परिवर्तनशीलता  एवं  जीवन  की    क्षणभंगुरता  का  स्पष्ट  चित्रांकन  किया  है।  समय  परिवर्तनशील  है,  जो  सतत  चलायमान  है  तथा  जीवन  क्षणभंगुर  है,  कब  समाप्त  हो  जाए  किसी  को  नहीं  पता।  अत:  मनुष्य  को  अपने  लक्ष्य  को  अतिशीघ्रता  से  प्राप्त  कर  लेना  चाहिए। 
(2)   
इस  काव्यांश  की  भाषा  सरल,  सरस  और  प्रवाहमयी  है  जिसमें  खड़ी  बोली  का  प्रयोग  है।
(3)   
जल्दी-जल्दी  में  पुनरुक्तिप्रकाश  अलंकार  है  तथा  बिंब  योजना  अत्यंत  सटीक  और  सार्थक  है।




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