2 ALOK DHANWA - PATANG आलोक धन्वा पतंग Extra Qquestions Answers
पतंग
3 Marks Questions
1.
आकाश को मुलायम कौन बनाता है और क्यों?
2.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
सबसे तेज़ बौछार गयीं भादो गया सवेरा हुआ खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा शरद आया पुलों को पार करते हुए अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से चमकीले इशारों से बुलाते हुए?
सबसे तेज़ बौछार गयीं भादो गया सवेरा हुआ खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा शरद आया पुलों को पार करते हुए अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से चमकीले इशारों से बुलाते हुए?
3.
बच्चे छतों पर कैसे दौड़ते हैं? छतों के खतरनाक किनारों से बच्चे कैसे बच जाते हैं?
4.
शरद ऋतु का आगमन कैसे व किसलिए हुआ?
5.
कवि ने ‘पतंग’ को बच्चों के लिए क्या माना है तथा उन्हें कपास की तरह कोमल और उनके पैरों को बेचैन क्यों कहा है?
6.
निम्नलिखित काव्यांश के शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लचीले वेग से अकसर
7.
‘छतों को भी नरम बनाते हुए दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए’ – का क्या तात्पर्य है?
8.
कवि ने प्रकृति को बदला हुआ क्यों कहा है तथा ‘शरद ऋतु’ का मानवीकरण किस प्रकार किया है? ‘पतंग’ कविता के आधार पर उत्तर दीजिए।
9.
‘रोमांचित शरीर का संगीत’ का जीवन के लय से क्या संबंध है?
10.
‘पतंग’ कविता का मूलभाव स्पष्ट
कीजिए।
3 Marks Answers
1.
आकाश को मुलायम शरद ऋतु बनाती है। वह आकाश को इतना सुंदर और मुलायम बना देती है कि पतंग ऊपर उठ सके। पतंग जिसे दुनिया की सबसे हल्की और रंगीन वस्तु माना जाता है, वह इस असीम आकाश में उड़ सके। दुनिया का सबसे पतला कागज़ तथा बाँस की पतली कमानी आकाश में उड़ सके और इसके उड़ने के साथ ही चारों ओर का वातावरणबच्चों की सीटियों, किलकारियों और तितलियों की मधुर ध्वनि से गूँज उठे।
2.
काव्य-सौंदर्य:
-कवि ने प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत चित्रण किया है।
-बाल-सुलभ चेष्टाओं का अनूठा वर्णन है।
-शरद ऋतु का मानवीकरण किया गया है।
-‘खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा’ में उपमा अलंकार है, ‘पुलों को
पार’ में अनुप्रास अलंकार तथा ‘ज़ोर-ज़ोर’ में पुरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
-खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
-मिश्रित शब्दावली है।
-लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग है।
-प्रसाद गुण है तथा मुक्तक छंद है।
3.
बच्चे छतों पर बेसुध होकर तथा डाल की तरह लचीले वेग से दौड़ते हैं। उन्हें छतों की कठोरता महसूस नहीं होती तथा उनके पदचापों से दिशाओं में मृदंग जैसी ध्वनि उत्पन्न होती है। बच्चे अपनी पतंगों को उड़ाने के लिए मकानों की छतों के खतरनाक किनारों पर दौड़ते हैं, इससे उनके गिरने का डर भी रहता है। ऐसी स्थिति में उन्हें अन्य कोई बचाने नहीं आता बल्कि उनके शरीर का रोमांच व जोश ही उनकी रक्षा करता है, उन्हें गिरने से बचाता है।
4.
शरद ऋतु पुलों को पार करती हुए अपनी नई चमकीली साइकिल तेज़ गति से चलाते हुए तथा ज़ोर-ज़ोर से घंटी बजाकर पतंग उड़ाने वाले बच्चों को इशारों से बुलाते हुए आई। शरद ऋतु आगमन इसलिए हुआ ताकि बच्चों की पतंग आकाश में उड़ सके। दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज़ उड़ सके अर्थात बच्चे दुनिया के सबसे पतले कागज़ व बाँस की सबसे पतली कमानी से बनी पतंग उड़ा सकें।
5.
कवि ने ‘पतंग’ को बच्चों की उमंगों का रंग-बिरंगा सपना माना है। आकाश में उड़ती हुई पतंग ऊँचाइयों की वे हदें हैं जिन्हें बालक मन छूना चाहता है और उसके पार जाना चाहता है। कवि ने बच्चों को कपास की तरह कोमल कहा है क्योंकि बच्चों का शरीर भी कपास की तरह मुलायम और कोमल होता है। बच्चे कहीं भी टिक कर नहीं बैठते, इसलिए कवि ने उनके पैरों को बेचैन कहा है।
6.
-काव्यांश में भाषा शुद्ध
साहित्यिक खड़ी बोली है।
-मिश्रित शब्दावली है। मुक्तक छंद है।
-‘दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए, वे पेंग भरते हुए चले आते हैं, डाल की तरह लचीले वेग से’ – में उपमा अलंकार का सुंदर प्रयोग है।
-‘दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए’ में श्रव्य बिंब का प्रयोग है।
-‘डाल की तरह लचीले वेग से अकसर’ पंक्ति में कवि ने बच्चों के शरीर के
लचीलेपन की तुलना पेड़ की डाल से की है। पेड़ की डाल एक जगह जुड़ी
शरीर को हिलाते-झुलाते तथा आगे-पीछे करते रहते हैं।
7.
इसका तात्पर्य है कि पतंग उड़ाते समय बच्चे चहकते और किलकारियाँ मारते ऊँची दीवारों से छतों पर कूदते हैं और इधर-उधर भागते हैं तो उनकी पदचापों से एक मनोरम संगीत उत्पन्न होता है। यह संगीत मृदंग की ध्वनि की तरह लगता है। साथ ही बच्चों का शोर भी चारों दिशाओं में गूँजता है अर्थात उनकी मधुर और उत्साह-भरी आवाज़ सभी दिशाओं मेंउनके उत्साह-भाव को व्यक्त करती है।
8.
कवि कहता है कि प्रकृति का अद्भुत सौंदर्य परिवर्तित हो गया है। तन-मन को भिगो देने वाली तेज़ बौछारें समाप्त हो गई हैं तथा भादों मास का अंधकार भी समाप्त हो गया है। अब शरद ऋतु का उजाला आ गया है। कवि ‘शरद ऋतु’ का मानवीकरण करते हुए कहता है कि शरद अपनी नई चमकदार साइकिल को तेज़ गति से चलाते हुए ज़ोर-ज़ोर से घंटी बजाकरपतंग उड़ाने वाले बच्चों के समूह को सुंदर संकेतों के माध्यम से बुला रहा है।
9.
रोमांचित शरीर का संगीत जीवन की लय से उत्पन्न होता है। जब मनुष्य किसी कार्य में पूरी तरह लीन हो जाता है तो उस कार्य की पूर्ति करते हुए उसके शरीर में एक अद्भुत रोमांच और संगीत पैदा होता है। उसी तरह जीवन में भी जब पूर्ण समर्पित होकर कोई कार्य किया जाता है तो उसमें भी एक अनूठी लय पैदा होती है। इस प्रकार जीवन के लय का रोमांचितशरीर के संगीत से अनूठा संबंध है।
10.
श्री आलोक धन्वा द्वारा रचित कविता ‘पतंग’ में कवि ने बाल-सुलभ इच्छाओं एवं उमंगों का सुंदर व सजीव चित्रण किया है। उन्होंने बाल क्रियाकलापों एवं प्रकृति में आए परिवर्तनों को सहज भाव से अभिव्यक्त किया है। पतंग बच्चों की उमंगों का सपना है। आसमान में उड़ती हुई पतंगों को बालमन छूना चाहता है। वे भय पर विजय पाकर गिर-गिर कर भी सँभलते हैं। एक ओर शरद ऋतु का चमकीला संकेत है जहाँ तितलियों की रंगीन दुनिया है। तितलियाँ उनके सपनों की रंगीनी को बढ़ाती हैं। बच्चों की किलकारियों से दिशाएँ भी मृदंग के समान बजती हैं। पृथ्वी भी उनकी कोमलता को छूने हेतु स्वयं उनका स्पर्श करना चाहती है। वे हर बार नई-नई पतंगों को सबसे ऊँचा उड़ाने का साहस लिए अँधेरे (भादों) के बादउजाले (शरद) की प्रतीक्षा करते हैं
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