Vartmaan Hee Satya Hai By Avinash Ranjan Gupta


वर्तमान ही सत्य है।
          आज मेरी उम्र 54 साल हो गई। सामान्यत:, मुझे अपना जन्मदिन मनाने का कोई शौक नहीं है; परंतु इस बार नजाने मुझे अपना जन्मदिन मनाने की प्रबल इच्छा हो रही थी। मैंने भी अपने दोस्तों को अपने जन्मदिन पर निमंत्रण दे डाला। ऐसे मेरे दोस्तों की संख्या तो उँगलियों पर ही गिनी जा सकती है फिर भी  मैंने पाँच-छह दोस्तों को बुलाया था पर आए केवल दो बाकी सब कहीं-न कहीं व्यस्त थे। जो दो दोस्त आए वे मेरे साथ ग्रेजुएशन में थे यहाँ तक कि हम तीनों छात्रावास के एक ही कमरे में रहा करते थे। ग्रेजुएशन के बाद फेसबूक, व्हाटसेप आदि पर तो मुलाक़ात होती ही रहती थी परंतु कई सालों के बाद आज आमने-सामने मुलाक़ात हो रही थी। जन्मदिन का सेलिब्रेशन कम और पुरानी यादों को ताज़ा करने में हम ज़्यादा व्यस्त थे। और तो और न जाने क्यों उन दिनों को याद करके बड़ा मज़ा आ रहा था। ऐसा लग रहा था कि मानो कल की ही बात हो। परंतु आज हम तीनों में बड़ा अंतर आ गया है। मैं केंद्र सरकार के खनिज विभाग में मुख्य सचिव के रूप में नियुक्त हूँ और मेरा एक मित्र एचडीएफ़सी बैंक में क्लर्क है, उसकी आँखों के नीचे की कालिमा देखकर यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उस पर दोहरा दबाव है। मेरा दूसरा मित्र किसी ट्रांसपोर्ट कंपनी में अकाउंटेंट है और बार-बार बजते उसके मोबाइल ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह भी अपने कामकाजी जीवन में बहुत व्यस्त है।
          उन दोनों से मेरी स्थिति काफी बेहतर है। करियर के साथ उनमें और मुझमें एक और बड़ा अंतर यह है कि मैंने अपनी प्रेमिका से शादी की और उन्होंने किसी और की प्रेमिका से क्योंकि हम तीनों जिसे डेट कर रहे थे उनमें से मैं ही सफल हुआ हूँ। इसके कई कारण हो सकते हैं पर मेरा मानना है कि जो वर्तमान से जुड़ा रहता है वही सफल होता है।
          मेरा पहला मित्र- बात कॉलेज के दिनों की है जब वह कॉलेज की क्लासेस को छोड़कर घंटों उसके साथ अपने हसीन सपने सजाया करता था। अपनी प्रेमिका के लिए शायरी और कविताएँ लिखना ही उसका उद्देश्य बन गया था। मेले में घूमना और सिनेमा जाना उसके प्रतिदिन के काम थे, ऐसे में जब उसका वर्तमान ही खोखला होता जा रहा था तो भविष्य की नींव भला कैसे मजबूत हो पाती? उसे समझाने के प्रयास में वो मुझे ही समझा दिया करता था। ज़हीन होने के बावजूद उसके वार्षिक परीक्षाओं में कम अंक आने लगे। परीक्षाफल देखने के बाद उसे आभास तो होता था कि उसने अपने पढ़ाई-लिखाई के साथ अन्याय किया है पर कुछ दिन बीत जाने के बाद वो फिर से उसी राह पर चल पड़ता। देखते-देखते तीन साल गुज़र गए और हमारी ग्रेजुएशन खत्म हो गई। उसे थर्ड डिवीज़न मिला था।
          मेरा दूसरा मित्र- मेरा दूसरा मित्र भी अपनी प्रेमिका की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपने खर्चे में कटौती करता था। यहाँ तक कि ज़रूरी पुस्तकें भी लेना उसे अपनी प्रेमिका की आवश्यकताओं की पूर्ति के सामने महत्त्व्हीन लगने लगे। उसे अपने सुनहरे भविष्य को सँवारना था; परंतु इसके लिए उसने हमेशा ही शॉर्टकट की तलाश की जैसे, लॉटरी खरीदना, हनुमान के सिक्के ढूँढ़ना वगैरह-वगैरह। उसे ईज़ी सक्सेस चाहिए था और उसकी आज की स्थिति देखकर यह पता चलता है कि उसे ईज़ी सक्सेस नहीं मिली। इस तरह मेरे दोनों मित्र वर्तमान को तबज़्जू न देकर भूतकाल और भविष्य में ही डूबे रहे। मेरे दोनों मित्रों के अंक इतने कम हो गए कि वे उच्च सरकारी नौकरी के लिए सदैव के लिए अयोग्य हो गए।
          ये दोनों जिन्हें डेट कर रहे थे जब उनके सामने अच्छे वर का प्रस्ताव आया तो उन्होंने इन्हें अलविदा कह दिया।  ऐसा आज के दौर में सही भी है, किसी को भी अपना अच्छा जीवन चुनने का हक होना चाहिए। डेट मैं भी एक लड़की         को कर रहा था, पर मेरे इन दो मित्रों कभी भी पता नहीं चला। मैं जिसे डेट कर रहा था उसके और मेरे विचारों में समानताएँ थीं। हम कम मिला करते थे और मिलने के बाद भी केवल पढ़ाई-लिखाई और अपने करियर से जुड़ी ही बातें ही करते थे। वास्तव में हम दोनों को यह अच्छे से पता था कि अगर जीवन भर बातें करनी हैं, एक साथ रहना है तो अभी का समय हमें अपने विकास में लगाना होगा। ग्रेजुएशन हम दोनों ने फर्स्ट डिवीज़न विथ डिस्टिंक्शन के साथ पास किया। उच्च सरकारी नौकरी के लिए हम दोनों ने आवेदन किया और हम दोनों को ही पहले ही प्रयास में नौकरी मिल गई।
          आज जब मैं अपने दोस्तों से इतने सालों के बाद मिला तो भी वे वर्तमान में न रहकर भूत पर पछतावा और भविष्य की आशंकाओं से भयभीत नज़र आ रहे थे। उनके हर एक वाक्य से यही स्पष्ट हो रहा था कि उन्होंने वर्तमान के महत्त्व को जाना ही नहीं है। मैं सही हूँ या गलत पर मेरा मानना है कि हमें केवल उम्र से नहीं बल्कि उत्तम सोच-विचार से  भी अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहिए।     
                                                                                                          अविनाश रंजन गुप्ता

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