Skul Me Mera Pahla Din By Avinash Ranjan Gupta


स्कूल में मेरा पहला दिन
            आज स्कूल में मेरा पहला दिन है और इस दिन की सबसे अच्छी बात यह है कि आज मुझे मेरी एक पहचान मिली है। आज मुझे मेरे कुछ सहपाठियों एवं मेरे कक्षाध्यापक ने मुझे मेरे असली नाम से पुकारा है। आज कहीं किसी रजिस्टर्स में मेरा नाम लिखा गया है और आज से ही मेरे शैक्षिक जीवन की शुरूआत प्रशासनिक तरीके से होनी शुरू हुई है।
            आज जब मैं अपनी स्कूली जीवन की कथा खुद लिख रहा हूँ तो शायद यह आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि नर्सरी, यूकेजी या क्लास एक का बालक ऐसी कथा खुद कैसे लिख सकता है? पर आपको मैं इस प्रश्न का उत्तर देने में गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ क्योंकि न ही मैं  नर्सरी, न ही यूकेजी और  न ही क्लास एक का छात्र हूँ मैं तो कक्षा तीसरी में हूँ और इसी कक्षा से मैंने अपने स्कूली जीवन की शुरूआत की है। इससे पहले मैं अपने घर पर ही पढ़ाई कर रहा था। और मैंने मेरे पिताजी के सहयोग अपनी प्रथम कृति के रूप में इसे लिखने का निर्णय लिया है। ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि मेरे अभिभावक मेरे शिक्षा के प्रति उदासीन थे या मेरे अभिभावक  के पास पर्याप्त पैसे नहीं थे। मेरे माता-पिता का मानना है कि अगर बच्चों को तीन साल की उम्र से ही बस्ते के बोझ के साथ स्कूल भेजा जाए तो यह एक तरीके से उनके बचपन को छीनने जैसा है। दूसरी तरफ़ इतने छोटे बच्चों का मस्तिष्क गीली मिट्टी की तरह होता है और उस गीली मिट्टी को सही आकार देने का कार्य एक अभिभावक बच्चे के आरंभिक वर्षों में खुद ही करें तो ज़्यादा बेहतर है न कि कोई शिक्षिका। क्योंकि आपको इस बात से सहमत होना ही पड़ेगा कि शिक्षिका के लिए क्लास के सारे बच्चे उनकी जिम्मेदारी है और आपके लिए सिर्फ़ आपका बच्चा ही आपकी जिम्मेदारी है। आप अपने बच्चे को अपना जितना भी समय देंगे वो सिर्फ़ आपके अपने बच्चे के लिए होगा और  शिक्षिका का सारे बच्चों के लिए।
            पिताजी ने यह भी समझाया था कि स्कूल में 6-7 घंटे व्यय करने से कहीं बेहतर है कि घर पर तीन-चार घंटे खुद ही बच्चों को पढ़ाया जाए और उनमें यथासंभव नैतिक गुणों का विकास किया जाए तो यह विधि सबसे उपयुक्त साबित होगी क्योंकि बच्चों का कोमल मस्तिष्क अभी तक अंग्रेज़ी या अन्य भाषाओं को समझने के लिए परिपक्व नहीं हुआ होता है। दूसरी बात यह कि बच्चों को अगर आरंभिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में दी जाती हैं तो वह उस नींव की तरह काम करती है जिस पर विद्या रूपी विशाल भवन का निर्माण किया जा सकता है।
            स्कूल में दाखिला लेने से पहले पिताजी ने मुझे कुछ समझाया था जिसका वास्तविक रूप आज मुझे क्लास में देखने को मिला। जब म्यूजिक टीचर ने एक बच्चे को गीत गाने को कहा तो उसके गाते ही सारे बच्चे हँस पड़े। मुझे मेरे पिताजी के वो वाक्य याद आ रहे थे जिनमें उन्होंने कहा था, “लोगों के हँसने पर अपने आप को मत रोक देना, जो लोग दूसरों की नाकामी पर हँसते हैं वे खुद अपने जीवन में कुछ नहीं कर पाते।” अब बारी मेरी थी, मैंने भी जब गाना गाना शुरू किया तो मेरे साथ भी वही हुआ फर्क सिर्फ़ इतना था कि मैं पहले छात्र की तरह रुका नहीं। मैंने अपना  गीत पूरा किया और नोटिस किया कि उनके हँसने की ध्वनि धीरे-धीरे क्षीण होती गई। मैंने अपने आप से कहा पापा आप ग्रेट हो। मैं एक दिन ज़रूर अच्छा गीत गा सकता हूँ।
            गणित की कक्षा में जब मिस आई तो उन्होंने एक बच्चे को ब्लैकबोर्ड के पास बुलाया और उसे कुछ सवाल हल करने के लिए कहा। बच्चे ने सवाल तो हल कर लिया परंतु उसमें कुछ गलतियाँ रह गई थीं। मिस ने डाँटते हुए कहा क्लास टू में भी तुमने अच्छे से पढ़ाई नहीं की थी। ऐसा करोगे तो हाईयर क्लासेस में बहुत परेशानी होगी। मिस की यह बात सुनकर मुझे वो वाक्या याद आ गया जब माँ ने पिताजी के गलत काम के लिए उन्हें डाँट लगाई थी और बदले में पिताजी गुस्सा न होकर उनसे पूरी नम्रता के साथ पूछे, “ठीक है आप मुझे सही तरीका बताइए।” और माँ ने उन्हें सही तरीका बताया। परंतु इस बच्चे ने अपनी गलती को सुधारने का तरीका मिस से पूछा ही नहीं । लगता है इसके पास मेरे जैसे समझदार पापा नहीं है।
            मिस के जाने के थोड़ी देर बाद ही कक्षा में एक इरेज़र  पर मालिकाना हक जताने के लिए दो बालकों में मल्ल युद्ध आरंभ हो गया। अगले क्लास की मिस जब तक आती है तब तक एक दो बटन शहीद हो चुके थे। मुझे मेरी माता ने कहा था, “किसी भी विवाद में पड़कर अपने शरीर को किसी भी प्रकार की हानि मत पहुँचाना। इंतज़ार करना और सही समय पर ही अगला कदम उठाना। अपने इमोशंस पर कंट्रोल रखना भी शिक्षा का एक उद्देश्य है।” मिस के आने पर दोनों को पनीसमेंट मिली और इरेज़र मिस ने अपनी कस्टडी में यह बोलकर ले लिया कि इसका फ़ैसला लास्ट क्लास में होगा कि यह किसका है?
            कक्षा समाप्त हुई और अगली कक्षा के शिक्षक आते ही एक छात्र ने टॉइलेट जाने की पर्मिशन माँगी मुझे भी टॉइलेट जाना था तो मैंने भी पर्मिशन माँग ली। पर्मिशन मिलते ही मानो वह जेट की स्पीड से दौड़कर जाने लगा और एक शिक्षक से टकरा गया। अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए शिक्षक ने उसे समझाते हुए कहा, “दौड़ो मत तुम गिर सकते हो।” उन्होंने मेरी तरफ़ इशारा करते हुए कहा, “देखो उस बच्चे को कितना शांत है और धीरे-धीरे जा रहा है।” टॉइलेट में जाने के बाद ही उस लड़के ने शिक्षक के बारे में मुझसे उल्टा-पुल्टा कहना शुरू कर दिया। पिताजी ने सही ही कहा था आज के युग में बिना माँगे ज्ञान देना अपनी शामत बुलाने के बराबर है। परंतु शिक्षक तो शिक्षक ही हैं।
            ईवीएस की कक्षा के दौरान जब सारे बच्चों ने शिक्षिका की लेस्सन समझ में आ जाने की बात पर सिर हिलाकर हामी भर दी तो मेरा स्वर “नहीं समझ में आया” विरोधी साबित हुआ और शिक्षिका ने मेरी तरफ़ ध्यान से देखते हुए कहा, “बताइए क्या समझ में नहीं आया?” मैंने अपने संदेहों को शिक्षिका के सामने खोलकर रख दिया। शिक्षिका ने मेरे प्रश्नों के उत्तर दे दिए और मुझे पाठ समझ में आ गया। क्लास से जाते समय शिक्षिका ने सारे बच्चों को मेरा उदाहरण देते हुए कहा, “देखो इस बच्चे ने डाउट पूछकर पाठ पूरा समझ लिया।” मैं चारों तरफ़ देखने लगा और पाया कि सुमन मुझे बड़े ध्यान से मुझे देख रही है और मुसकरा भी रही है। मैंने भी मुस्करा दिया। मुझे माँ के वे वाक्य याद आने लगे जिसमें माँ ने कहा था, “वो सिर्फ़ 5-10 मिनट के लिए ही बेवकूफ होता है जो सवाल का जवाब पूछ लेता है पर वो सदा के लिए बेवकूफ होता है जो सवाल पूछता ही नहीं है।”
            पिताजी ने कहा था कि कक्षा में कुछ बच्चे ऐसे होंगे जो शरारत करेंगे। टीचर की बातों को सही से नहीं सुनेंगे और पूरी क्लास को डिस्टर्ब भी करेंगे। वास्तव में ऐसे लोग हर जगह होते हैं पर तुम अपना पूरा ध्यान टीचर की बातों में लगाना। अगर तुमने कक्षा की पाठों को सही तरीके से पढ़ लिया तो तुम्हें किसी भी तरह की ट्यूशन की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। वरना उसी पाठ को फिर से पूरा करने के लिए तुम्हें ट्यूशन की ज़रूरत पड़ेगी। पिताजी की बातें कितनी सच्ची हैं। पढ़ाए गए पाठ के बाद जब मिस ने बच्चों पूछा, “वॉट टर्म वी यूज फॉर फियर ऑफ इंग्लिश स्पीकिंग?” सारी क्लास शांत थे पर मैंने उत्तर दे ही दिया मिस, “इट इज़ एंग्लो फोबिया” “वेलडन माइ चाइल्ड” मिस ने कहा।
            स्कूल की छुट्टी होने वाली थी। मेरा आज का दिन बहुत अच्छा बीता। मेरे माता-पिता ने अपने अनुभवों से मुझे पहले ही बहुत सारी चीज़ें बता दी थीं। जिसमें से कुछ तो आज व्यवहार में आईं और कुछ जैसा मुझे बताया गया था कि  स्कूल में चीज़ें गुम होंगी तब तुम्हें अपनी चीजों को अच्छे-से संभालना आ जाएगा, शिक्षक से डाँट मिलेगी  परंतु वह लाभदायक होगी, चोट लगेगी तब तुम और भी ज़्यादा सावधान हो जाओगे, प्रतियोगिता में जीत के साथ-साथ हार का भी मुँह देखना पड़ेगा जो तुम्हारे लिए सबक होगा कि हर सेर का सवासेर इस दुनिया में मौजूद है, किसी कारणवश देर से पहुँचने पर अपने कक्षाध्यापक से क्षमा माँगना जिससे तुम्हारे जिम्मेदार होने का पता चले, अपने उन शिक्षकों को भी पूरा सम्मान और उनके प्रथम दृश्य पर ही अभिवादन देना जो तुम्हें या तो जूनियर क्लासेस में पढ़ा चुके हैं या फिर हाइयर क्लासेस में पढ़ाएँगे क्योंकि ज्ञान सभी के पास है और सभी शिक्षक लाभकारी हैं। परीक्षा में तुम्हारे अंक कम आएँगे तो सबसे पहले अपनी कमियों और गलतियों को देखना और कोशिश करना कि उन कमियों और गलतियों दूर किया जा सके। इसके अलावे भी बहुत सी बातें होंगी जिसे तुम्हें अपने अनुभव और ज्ञान से सुलझाना और समझना होगा।  
अविनाश रंजन गुप्ता    
  

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