सबको पता है सब क्या हैं Sabko Pata Hai Sab Kya Hain By Avinash Ranjan Gupta


सबको पता है सब क्या हैं     
      आज की दुनिया तकनीक की दुनिया है। पहुँचे हुए फकीरों की भी कमी नहीं है। यहाँ लोग दूसरों के हाव-भाव से यह पता लगा लेते हैं कि कौन क्या है और कितने पानी में हैं? किसमें कितनी सच्चाई और कितनी मिलावट नज़र के पारखी लोगों के लिए ये पता लगाना पानी के बुलबुले फोड़ने जितना सहज है। यहाँ तक कि विज्ञान ने भी ऐसे उपकरण ईज़ाद कर दिए हैं जिससे किसी व्यक्ति के सच्चे और झूठे होने का पता लगाया जा सकता है। अनेक ऐसी किताबें भी छप चुकी हैं जिसमें कायिक भाषा (Body Language) के अध्ययन के बारे में व्यवस्थित (Systematic) तरीके से बताया गया है।            
      आज लगभग सभी जानते हैं कि कौन क्या है? किसी कार्यालय, परिवार, संघ (Society), सभा (Meeting) के सदस्य दूसरे सदस्यों के आचरण और व्यवहार से अवगत (Aware) हो ही जाते हैं। परंतु यहाँ सवाल दूसरों को जानने का नहीं बल्कि खुद को जानने से है। किसी दूसरे के घर में वाशिंग मशीन हो तो भी हमारे घर के कपड़े साफ़ नहीं होंगे और न ही हमारे घर में टी.वी. हो तो दूसरे के घर में कार्यक्रम प्रसारित (Telecast) होंगे। ठीक इसी प्रकार हमारे विकास का मूल आधार हम स्वयं ही हैं। जब हम खुद को जान जाते हैं तभी जाकर हमारे अच्छे दिन आते हैं।
      लोगों को ये बातें पता होती हैं परंतु फिर भी वे इसे नज़रअंदाज़ करते हैं। आज के जीवन की यह तो सच्चाई बन चुकी है कि जो चीज़ें हमारे लिए महत्त्वपूर्ण होती हैं उसे हम कम अहमीयत (Importance) देते हैं। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा (Soil) प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण इत्यादि ये सब हमारी लापरवाही के कारण ही अपने विकराल (Horrible) रूप में बढ़ता जा रहा है।
      हमें सचमुच इस बात पर ज़ोर देने की आवश्यकता है कि हम क्या हैं और हमें कैसा होना चाहिए? सबसे पहले हमें अपने पर सुधारकार्य (Reformation) करना होगा। बुरी और अनावश्यक आदतों को निर्मूल (Uproot) करना होगा। सत्संगों में सम्मिलित होना होगा और अच्छे तथा प्रभावी गुणों का संचार खुद में करना होगा। इस कार्य में एक विशेष बात यह है कि आपकी प्रतिद्वंद्विता (Competition) किसी और से नहीं बल्कि खुद से ही होती है और आप अगर इतिहास के पन्नों को पलटेंगे तो यह पाएँगे कि आज तक जितने भी लोगों ने लोकव्यवहार और जनसाधारण में प्रसिद्धि पाई हैं उन्होंने केवल खुद से ही प्रतिस्पर्धा (Competition) की है।
      एक व्यक्ति का सुखी संसार उसका परिवार, परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य, उसके रिश्तेदार, उसका व्यापार या उसका कार्य होता है और इन चीजों में बरकत (Development) होने से ही वह अपने जीवन को सफल और सुखी मानता है। खुद को जान लेना और आवश्यकता अनुसार खुद में सकारात्मक (Positive) परिवर्तन लाना इन सब सुखों को प्राप्त करने का एकमात्र उपाय है।  
       
     


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