Putra KO Patra A Letter to Son By Avinash Ranjan Gupta
प्रिय पुत्र
अपूर्व अभिनंदन
पुत्र ये पत्र जब तुम पढ़
रहे होगे तब तक तुम अपने होश सँभाल चुके होगे और अपने जीवन में कुछ आगे भी बढ़ गए
होगे। जीवन में और भी प्रभावी तरीके से आगे बढ़ने के लिए इस पत्र में लिखी बातें
तुम्हारे लिए मील का पत्थर साबित होगी। पुत्र तुम्हारे जन्म पर ही हमने तुम्हें
टीके (Vaccination) दिलवाने शुरू कर दिए थे और
टीकों का सिलसिला अब तक जारी है। इन टीकों के पीछे का उद्देश्य तुम्हारा उत्तम
स्वास्थ्य एवं लंबी जीवनावधि (Life Span) के अतिरिक्त कुछ भी
नहीं। हमने तुम्हारे आत्मा के घर को मज़बूत एवं टिकाऊ (Durable) बनाने के लिए हर संभव कार्य यथाशक्ति और यथासंभव पूर्ण किया है। अब यह
तुम्हारी ज़िम्मेदारी है कि इस शरीर रूपी घर को शुद्ध और संतुलित भोजन, व्यायाम और दुर्व्यसनों से दूर रह कर इसे आपदाओं से बचाओगे। ये सारी बातें
तुम्हारे स्वास्थ्य से जुड़ी हुई हैं। अब हम तुम्हारे मानसिक स्वास्थ्य के बारे में
भी बातें करेंगे। गर्भावस्था से ही तुम्हारी माँ ने डॉक्टरों की सलाह से फॉलिक
एसिड की गोलियों के अलावा अन्य कई दवाइयाँ लेनी शुरू कर दी थी ताकि तुम एक प्रखर
और प्रबुद्ध मस्तिष्क के स्वामी बन सको। आज तुम इस पत्र में पढ़ोगे कि किस प्रकार
तुम्हें अपने मस्तिष्क को संचालित करना चाहिए जिससे तुम मानवता के शिखर पर पहुँच
जाओ। पुत्र तुम्हें अपने जीवन में अनेक मित्र मिलेंगे जिनमें से कुछ तुम्हारे घनिष्ठ
मित्र भी होंगे पर तुम्हारी विपत्ति के समय भी तुम्हारे घनिष्ठ मित्र कुछ समय के
लिए ही तुम्हारे पास रहेंगे इसलिए तुम्हारे लिए मेरी राय यह है कि सबसे पहले तुम
स्वयं को अपना प्रिय मित्र बनाओ क्योंकि तुम किसी भी स्थिति भी अपने साथ ज़रूर
रहोगे। इस तथ्य के पीछे एक और पुख्ता कारण यह भी है कि मैंने ऐसे अनेक मामले (Cases) देखें हैं जिसमें वर्षों की दोस्ती किसी मामूली-सी बात पर टूट जाती है और
मित्रता शत्रुता में बदल जाती है। इसलिए तुम्हें मित्रों के चयन में भी सावधानी
बरतने की ज़रूरत है। जिन मित्रों से तुम्हारे बौद्धिक और नैतिक मूल्यों का विकास हो
वही तुम्हारे परम मित्र होंगे। तुम्हें यह भी याद रखने की ज़रूरत है कि हम सभी के
पास सीमित समय है। इस सीमित समय में ही तुम्हें अपने आपको और समाज को अपना श्रेष्ठ
(Best) देना है। इसकी रणनीति तुम्हें कैसे बनानी है, यह तुम्हें खुद ही तय करना होगा। लेकिन हाँ, अपना
श्रेष्ठ देने के लिए तुम्हें समय की महत्ता को पहचानना पड़ेगा। समय के अनुरूप काम
करने वाले ही सफल होते हैं, पर मेरा यह कदाचित अर्थ नहीं है
कि तुम उतावले/ हड़बड़ाने वाले प्रवृत्ति के मनुष्य बन जाओ। याद रखो जीवन में सब्र
का बहुत महत्त्व है जिनमें सब्र नहीं होता उन्हें अधपका खाना ही खाना पड़ता है। बेसब्री
तुम्हें कभी भी बड़े लक्ष्य की ओर नहीं लेकर जाएगी। लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए तुम्हें जुझारू प्रवृत्ति का भी बनना पड़ेगा।
वास्तव में जूझ और कुछ नहीं बल्कि एक संघर्ष है जो तुम्हें उस समय तक करनी है जब
तक कि शोहरत तुम पर फिदा न हो जाए और सफलता तुम्हारे कदमों को न चूम ले। अपने
लक्ष्य के दौरान तुम्हें पारिवारिक और सामाजिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ेगा।
ये समस्याएँ जीवन के अनिवार्य अंग हैं। इनका
सामना तुम्हें ऐसे ही करना है जैसे कि ये तुम्हारे लिए कोई सामान्य बात हो। समस्या
कभी भी इंसान के मस्तिष्क से बड़ी नहीं होती है। तुम्हें अपने जीवन में अनेक फ़ैसले
भी लेने होंगे और कुछ सिद्धांतों का भी पालन करना पड़ेगा। किसी भी स्थिति में दो
नावों पर सवार होने की बात या दो खरगोशों को एक साथ पकड़ने की बात पर ज़ोर मत देना
या ये मत सोचना कि मैं ऐसा किया होता तो ज़्यादा बेहतर होता। मेरे ऐसा कहने का कारण
यह है कि संशय की स्थिति में रहने वाला व्यक्ति अपनी ऊर्जा को गलत जगह नियोजित
करता रहता है और परिणाम में हताशा के अलावा उसे कुछ भी प्राप्त नहीं होता। कभी भी
संशय में मत रहना। तुम में ऊर्जा अक्षय का स्रोत है। वस्तुत:, ऊर्जा अक्षय का स्रोत हम सभी में है परंतु हममें से अधिकतर लोग अपनी
ऊर्जा को वहाँ व्यय करते हैं जहाँ से कुछ पुख्ता हासिल होने वाला नहीं है। ये वही
बात है “बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से पाय।” तुम्हें अधिकतर क्षेत्रों में खुद
को प्राथमिकता देनी होगी। तुम्हें यह मानना चाहिए कि तुम हो तो सब हैं। आत्मबलिदान
(Self-Sacrifice) की स्थिति कभी भी नहीं आती है क्योंकि हर
परिस्थिति में दूसरा विकल्प (Alternative) उपस्थित रहता है।
तुम्हें यह भी याद रखने की
ज़रूरत है कि पृथ्वीलोक पर कर्मों को ही महान समझा जाता है। अवतार लेने वाले भगवान
के रूप कृष्ण और राम को भी कर्म करना ही पड़ा था। इस पृथ्वी पर बिना कर्म के कोई भी
नहीं टिक सकता और महत्त्वपूर्ण बात यह कि प्रत्येक को अपने कर्मों का फल भोगना
पड़ता है। इसलिए जब भी तुम्हारे साथ कुछ अच्छा होता है तो सोची कि ये तुम्हारे
अच्छे कर्मों का फल है और इसकी उलटस्थिति भी तुम्हारे अपने कर्मों का ही फल होगा।
कर्मों से जुड़ी बातें सीधे गीता, वेद,
उपनिषद आदि से जुड़ी होती हैं और ये ग्रंथ ईश्वर
से। इसलिए ईश्वर के अस्तित्व पर विवाद खड़ा
हो जाता है कि ईश्वर हैं या नहीं। मेरी राय से तुम इस विवाद में कभी मत पड़ना
क्योंकि आज तक के इतिहास में वाद-विवाद से झगड़े बढ़े ही हैं। तुम्हें बस ये मान
लेना है कि कोई तो ऐसी सत्ता है जिसने सूर्य, चाँद, पृथ्वी, ग्रह, तारे पशु-पक्षी, हवा, पानी, हमें तुम्हें और यह संसार बनाया है। समाज तुम्हें तुम्हारे औकात के हिसाब
से एक दर्जे में बाँधने की कोशिश करेगा पर तुम कभी भी अपने आपको ऐसे किसी औकतिया
दर्जे में बँधने मत देना जो तुम्हें आगे बढ़ाने से रोके। यह संभव है कि आने वाले
दिनों में जीवन मूल्य बदल चुके होंगे पर इस हद तक कभी भी नहीं बदलेंगे कि इन
शाश्वत मूल्यों का अस्तित्व निर्मूल हो जाए। अंत में यह कि तुमने मानव जीवन में
जन्म लेने के लिए कुछ भी मेहनत नहीं की थी परंतु फिर भी तुम सर्वश्रेष्ठ योनि में
जन्म लिए हो इसलिए तुम्हारा यही उद्देश्य होना चाहिए कि अपने जीवन को कैसे
सर्वश्रेष्ठ बनाया जाए? अपने जीवन का हर दिन अपने जन्मदिन की तरह ही मानना
और खुश रहना क्योंकि वह दिन तुम्हारी बची हुई ज़िंदगी का पहला दिन है।
तुम्हारा पिता
अविनाश रंजन गुप्ता
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