निर्भीक बनें और सपने बुनें Nirbhik Bane Aur Sapne Bune By Avinash Ranjan Gupta


निर्भीक बनें और सपने बुनें        
      महाभारत के युद्ध में कर्ण के सारथी भद्रराज नरेश ने कर्ण से पूछा, “ हे कर्ण, आप इस दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर (Archer) अर्जुन से युद्ध करने जा रहे हैं, क्या आपको डर नहीं लगता?” उत्तर में कर्ण ने कहा, “डर तो लगता ही है और डर पर जय पाने के लिए मैंने धनुर्विद्या के सारे मंत्रों को अच्छी तरह से कंठस्थ (Memorise) कर लिया है। ये डर ही मुझे सदा सावधान रखता है।” इस कथोपकथन (Dialogue) से यह बात तो सिद्ध हो जाती है कि डर कमोबेस (More or Less) सभी प्राणियों में होता ही है। डर को अपने अंदर से निर्मूल कर देना सर्वथा कोरी कल्पना है पर डर पर जय पाने के लिए हम अपने आपको समृद्ध और शांतचित्त बना सकते हैं।     
      जब स्वामी विवेकानंद जी के पिताजी का देहांत हो गया तो उनपर उनकी माता और छोटी बहन की ज़िम्मेदारी आ गई। फिर भी उन्होंने साहस और जज़्बे से काम लिया और वो बन ही गए जो वे बनना चाहते थे। अपने लघु जीवन में उन्होंने वो कर दिखाया जिसके बारे में लोग कल्पना भी नहीं कर सकते थे।
      आप सिर्फ़ एक बार आत्म-मंथन (Introspect) कीजिए और खुद से पूछिए कि क्या आप वही कर रहे हैं जिस काम के लिए आपका जन्म हुआ है? क्या आप भीड़ के शोर-गुल में अपने जीवन के संगीत को बिना सुने ही समाप्त कर देना चाहते हैं? क्या आप बंधनों में ही उलझे रहना चाहते हैं? मुझे पूरा यकीन है कि आपको जो उत्तर मिलेगा अगर आपने उसे वास्तविक रूप दे दिया तो इस जहान में आपका आना सार्थक होगा। अपने सपने को पूरा करने के लिए आपको निर्भीक (Fearless) होना पड़ेगा और निर्भीक बनने के लिए आपको अपने अंदर की आवाज़ सुननी पड़ेगी न कि बाहर वालों की। आपको लोगों से फ़ज़ीहत (Insult) और फब्तियाँ (Comments) सुनने को मिलेंगी, आपके कदम भी डगमगाएँगे, हौसला क्षीण (Cranky) होता दिखेगा, योजनाएँ शिथिल पड़ती दिखेंगी तब आप यह सोचिएगा कि लक्ष्य आपके काफ़ी निकट है। क्योंकि शिखर (Summit) पर पहुँचने से पहले रास्ते ज़्यादातर टेढ़े-मेढ़े और घुमावदार ही होते हैं।  
      हम आम आदमी बनकर अनेक समस्याओं का सामना करने को तैयार हो जाते हैं तो विशिष्ट बनने के लिए और अपने सपनों को जीने में आने वाली समस्याओं का सामना करने में क्या आपत्ति है। बहुमत (Majority) की सरकार बनती है। बहुमत से सच को भी झूठ साबित किया जा सकता है परंतु अंतरात्मा (Conscience) कभी बहुमत को नहीं मानती। हमलोगों में से बहुत लोगों ने अपनी अंतरात्मा को सुनना ही बंद कर दिया है। केवल बाहरी बहुमत ही हमारे भाग्य का निर्धारण करता है। अगर आपको लगता है कि आप अपने सपने पूरे कर सकते हैं तो यह भी सोच कर मत रुकिए कि अभी बहुत समय है। वास्तव में समय कभी भी बहुत नहीं होता। निर्भीक बनिए और अपने सपनों को पूरा कीजिए।   

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