MANUSHYATA मैथिलीशरण गुप्त — मनुष्यता CLASS X HINDI B 2 MARKS QUESTIONS ANSWERS
2 Marks Questions
1. पशु की प्रवृत्ति कैसी होती है? क्या मनुष्य को उसका अनुकरण करना चाहिए?
2. कवि ने स्वयं को अनाथ मानने से मना क्यों किया है?
3. ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि क्या सन्देश देना चाहता है?
4. व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए? इस कविता के आधार पर लिखिए।
5. ‘मनुष्य मात्र बंधु है’ –से आप क्या समझते हैं?
6. कवि ने सबको एक साथ चलने की प्रेरणा क्यों दी है?
7. कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है?
8. उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है?
9. कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त है कि हमें गर्व रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए।
2 Marks Answers
1. पशु की
यह प्रवृत्ति
होती है
कि वह
आप ही
आप चरता
है, उसे
दूसरों की
चिंता नहीं
होती । केवल अपनी
सुख-सुविधाओं
की चिंता
करना मनुष्य
को शोभा
नहीं देता।
अतः उसे
इस पशु-प्रवृत्ति का
अनुकरण नहीं
करना चाहिए
क्योंकि सच्चा
मनुष्य तो
वही कहलाता
है जो
परहित में
आत्मबलिदान तक
कर देता
है।
2.
कवि के अनुसार परमपिता परमेश्वर सबके साथ है। ईश्वर दीनबंधु है और उसके हाथ बहुत विशाल हैं अर्थात् वह सबकी सहायता करने में समर्थ है। ईश्वर को होते हुए प्रत्येक मनुष्य सनाथ हैं। अतः मनुष्य को स्वयं को अनाथ नहीं मानना चाहिए।
3. ‘मनुष्यता’ कविता के
माध्यम से
कवि यह
सन्देश देना
चाहता है
कि हमें
अपना जीवन
परोपकार में
व्यतीत करना
चाहिए। सच्चा
मनुष्य दूसरों
की भलाई
के काम
को सर्वोपरि
मानता है।
हमें मनुष्य-मनुष्य के
बीच कोई
अंतर नहीं
करना चाहिए।
हमें उदार
ह्रदय बनाना
चाहिए। एक
अन्य सन्देश
वह यह
भी देना
चाहता है
कि हमें
धन के
मद में
अंधा नहीं
बनाना चाहिए।
मानवतावाद को
अपनाना चाहिए।
4. व्यक्ति को परोपकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए। और अपने अभीष्ट मार्ग पर एकता के साथ बढ़ना चाहिए। इस दौरान जो भी विपत्तियाँ आएँ, उन्हें ढकेलते हुए आगे बढ़ाते जाना चाहिए। उदार ह्रदय बनाकर अहंकार रहित मानवतावादी जीवन व्यतीत करना चाहिए।
5. इस कथन
से हम
यह समझते
हैं कि
सभी मनुष्य
एक ही
परमात्मा की
संतान है
इसलिए उनमें
मात्र एक
ही संबंध
हो सकता
है-बंधुत्व
का। इसलिए
हमें उनमें
भेदभाव नहीं
समझना चाहिए।
6.
कवि
ने सबको एक साथ चलने की प्रेरणा इसलिए दी है क्योंकि सभी मनुष्य एक ही पिता की
संतान है इसलिए बंधुत्व के नाते हमें सभी को साथ लेकर चलना चाहिए क्योंकि समर्थ
भाव भी यही है कि हम सबका कल्याण करते हुए अपना कल्याण करें।
7. कवि ने
ऐसी मृत्यु
को सुमृत्यु
कहा है
जो मानवता
की राह
में परोपकार
करते हुए
आती है
। जिसके
बाद मनुष्य
को मरने
के बाद
भी याद
रखा जाता
है।
8. उदार व्यक्ति समस्त सृष्टि से आत्मभाव रखता है और मनुष्यता के लिए मरता है। उसकी कथा स्वयं सरस्वती बखानती है, सम्पूर्ण मानवता उसका उपकार मानती है, उसकी कीर्ति सदैव जीवित रहती है और सृष्टि उसे युगों तक पूजती है यही उदार व्यक्ति की पहचान है।
9. कवि ने निम्नलिखित पंक्तियों
में यह व्यक्त
किया है कि हमें गर्व रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए-
रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में।
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।।
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