मैं तुम्हें पापों से बचा रहा हूँ Main Tumhen Papo Se Bacha Raha Hoon By Avinash Ranjan Gupta


मैं तुम्हें पापों से बचा रहा हूँ
      जाने-अनजाने हममें से अधिकतर एक - दूसरे को पापों से बचाते रहते हैं और पापों से संक्रमित (infected) भी करते रहते हैं। पर इस बात का इल्म (Knowledge) हमें नहीं होता है और कभी-कभी हम खुद पापों से संक्रमित होते रहते हैं इस बात की जानकारी भी हमें नहीं रहती है। जब कोई अधिकारी या व्यापारी अपने पद या एकाधिकार (Monopoly) का अनुचित लाभ उठा रहा होता है तो लोग मिन्नतें करते हैं, इंसानियत के हवाले देते हैं कि वे न्यायसंगत कार्य करें। बावजूद इसके जब अधिकारी या व्यापारी की अंतरात्मा उसे नहीं धिक्कारती तो वे पाप के संसर्ग में चले जाते हैं। अगर अधिकारी या व्यापारी की अनुमानित दृष्टिकोण यह है कि वे लोगों से कुछ ज़्यादा असूल करके अनुचित लाभ का कुछ अंश मंदिरों और मठों में दान कर देंगे और इससे उनके पाप कट जाएँगे तो यह उनकी मिथ्या कल्पना है।
      दूसरी तरफ ईश्वर ने कुछ ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि जब भी कोई व्यक्ति कुछ भी अमानवीय कार्य करता है तो उसके इस कृत्य के फलस्वरूप देर-सबेर उसके साथ कुछ तो ऐसा ज़रूर होता जिससे उसे अपने किए कृत्यों का आभास हो जाए और अगर उसे ऐसा आभास नहीं होता है तो कोई व्यक्ति उसे उसकी गलतियों का एहसास ज़रूर दिलाएगा। अगर उसकी नज़रें पारखी और अनुभव की अमीरी हैं तो उसे यह समझने में देर नहीं लगेगी कि उसके साथ ये सब हो क्यों रहा है? यही बात व्यक्ति के अच्छे कर्मों के साथ भी होती है। उसके अच्छे कर्मों के फलस्वरूप देर-सबेर आने वाले परिणाम दुखद न होकर सुखद ही होते हैं। जैसी करनी वैसी भरनी इसी सिद्धांत को मानने से मानवता बची रह सकती है।   
      विचारणीय यह भी है कि आज की सभ्यता की आधुनिक संस्कृति विचारों और कार्यों में न दिखकर चीजों में दिखने लगी हैं। लोग ज़्यादा से ज़्यादा  चीजों के स्वामी बनना चाहते हैं। लोग वे सभी संसाधन जुटा लेना चाहते हैं जिससे उनके शरीर को सुख मिल सके यह सही है भी परंतु इतना भी नहीं कि इसे अंतिम सत्य के रूप में स्वीकार कर लिया जाए। शरीर के सुख से आत्मा की शांति कहीं श्रेयस्कर है।
      सीधे शब्दों में अगर आप ईश्वर पर विश्वास रखते हैं तो पूरा विश्वास रखिए और ऐसे ही कार्य कीजिए जिससे ईश्वर की प्रसन्नता को प्रथम स्थान मिले और अगर आप ईश्वर पर विश्वास नहीं रखते हैं तो ऐसे कार्य कीजिए जिससे इस कलियुग में ही लोगों को आपमें ईश्वर के दर्शन हो जाएँ। याद रखिए इस पृथ्वीलोक में ईश्वर को भी झूठ और छल का सहारा लेना पड़ा था और ऐसे बहुत-सी स्थितियाँ आपके जीवन में भी आएँगी परंतु ईश्वर के उस झूठ और छल के पीछे का उद्देश्य सदा मानव कल्याण ही था। 


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