MAHADEVI VERMA – MADHUR – MADHUR MERE DEEPAK JAL महादेवी वर्मा — मधुर—मधुर मेरे दीपक जल MANUSHYATA मैथिलीशरण गुप्त — मनुष्यता CLASS X HINDI B 2 MARKS QUESTIONS ANSWERS
2 Marks Questions
1.
‘मधुर-मधुर, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस’- कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग-अलग तरह से जलने को क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।
2.
स्नेहहीन दीपक से क्या तात्पर्य है?
3.
कवयित्री दीपक को ‘विहँस-विहँस’ कर जलने के लिए क्यों कह रही है?
4.
कवयित्री ने बादलों की क्या विशेषता बताई हैं?
5.
पतंगा अपने क्षोभ को किस प्रकार व्यक्त करता है?
6.
सागर को ‘जलमय’ कहने का क्या तात्पर्य है? और उसका ह्रदय क्यों जलता है?
7.
दीपक से किस बात का आग्रह किया जा रहा है और क्यों?
8.
‘विश्व-शलभ’ दीपक के साथ क्यों जल जाना चाहता है?
9.
कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से क्यों प्रतीत हो रहे हैं?
2 Marks Answers
1.
कवयित्री
अपने आत्मा
रूपी दीपक
को कभी
मधुरता के
साथ, कभी
उत्साह से
प्रसन्न होकर, कभी डर
से कांपकर
और कभी
हँसकर जलने
को कहती
हैं। वस्तुतः
मधुरता, उत्साह, डर और
प्रसन्नता जीवन
की विभिन्न
स्थितियों का
प्रतीक हैं। इनके द्वारा
वे यह
कहना चाहती
हैं कि
जीवन की
विभिन्न परिस्थितियों
में आत्मा
के परमात्मा
प्रियतम से
मिलने के
लिए निरंतर
प्रयत्न करते
रहना चाहिए।
2. स्नेहहीन दीपक तारों को कहा गया है। क्योंकि उनमें स्नेह का अभाव है अर्थात् वे असंख्य होने के बाद भी प्रकाश नहीं देते। उनमें आध्यात्मिक आस्था का अभाव है।
3.
कवयित्री
दीपक को
विहँस-विहँस
जलने के
लिए इसलिए
कह रही
हैं क्योंकि
परमात्मा से
मिलने की
राह में
उसे प्रसन्नता
पूर्वक अपना
बलिदान करना
चाहिए ताकि
ईर्ष्या , द्वेष
और तृष्णा
से जलती
प्रकृति उससे
प्रेरणा ले
सके। कवयित्री
अपने ह्रदय
को कहती
है कि
यह बलिदान
विवशतापूर्वक नहीं
वरन् प्रसन्नतापूर्वक अपना बलिदान करना
चाहिए।
4.
कवयित्री ने बताया है कि बादल अपने ह्रदय में चकाचौंध पैदा करने वाली बिजली धारण करते हैं। जो भौतिक समृद्धि के प्रति आकर्षण का प्रतीक है। और संसार के लोगों में आध्यात्मिक आस्था के अभाव को दर्शाता है।
5.
पतंगा
अपना क्षोभ
सर धुनकर
व्यक्त करता
है। वह
क्षोभ व्यक्त
करने के
लिए दीपक
से मिलकर
न जल
पाने की
बात कहकर
विलाप करता
है।
6.
सागर
को ‘जलमय’ कहने का तात्पर्य
संसार के लोगों को सुख-वैभव से भरपूर बताने से है। उनके अनुसार संसार के लोग हर प्रकार से समृद्ध
होते हुए भी एक-दूसरे
से ईर्ष्या , द्वेष
और तृष्णा के कारण जलते हैं। इसीलिए उन्होंने कहा है कि संसार रुपी सागर का
ह्रदय जलता है।
7.
दीपक
से प्रसन्नता
पूर्वक जलने
का आग्रह
किया जा
रहा है
जिससे प्रियतम
का पथ
आलोकित हो
सके अर्थात्
आत्मा रूपी
दीपक से
आत्म-बलिदान
का आग्रह
किया जा
रहा है
जिससे परमात्मा
रूपी प्रियतम
के मिलन
का पथ
प्रकाशित हो
सके।
8.
शलभ दीपक के साथ इसलिए जल जाना चाहता है ताकि वह प्रकाश से मिलन कर सके। उसी प्रकार विश्व-शलभ भी परमात्मा रूपी प्रकाश से मिलने के लिए दीपक के साथ जल जाना चाहता है।
9.
आकाश
में अनगिनत
तारे हैं
परंतु वह
संसार को
प्रकाशित नहीं
करते। प्रकाश
तो सूर्य
से ही
होता है। इसीलिए तारों
को स्नेहहीन
दीपक कहा
है अर्थात्
इस संसार
रूपी गगन
में तारों
रूपी अनेक
लोग ऐसे
हैं जिनके
ह्रदय में
दया, प्रेम, करुणा, प्रभु-भक्ति आदि
का अभाव
है। अतः
वह संसार
को इन
भावनाओं से
रहित बताने
के लिए
स्नेहहीन तारों
को प्रतीक
रूप में
प्रयोग किया।
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