क्या हम सब संक्रमित हैं? Kya Hum Sab Sankramit Hain By Avinash Ranjan Gupta


क्या हम सब संक्रमित हैं?       
      आज पूरे विश्व में जिस गति से झूठ की महामारी (Epidemic), क्रोध की विभीषिका (Dread), ईर्ष्या (Jealousy) का उपद्रव (Disturbance), भ्रष्टाचार (Corruption) के जीवाणु (Bacteria), लड़ाई-झगड़े की आपाधापी और गालियों का चलन फैल और बढ़ रहा है, वह इस ओर इशारा करता है कि मानव मस्तिष्क मूल रूप से विकसित होने के बजाय विकृत (Deformed) हो रहा है। यही कारण है कि कई अनचाहे और अप्रत्यशित (Unexpected) वारदातें (Incidents) रोज़ाना हकीक़त का जामा पहन रही हैं।          
      इन सबमें बचकाना बात तो यह लगती है कि हम बचपन से पढ़ते-सुनते आए हैं कि हमें सच बोलना चाहिए, सच का ही साथ देना चाहिए और सही कार्यों का ही निष्पादन करना चाहिए। इस कथन के विपरीत, अधिकांशत:, जो आज सच बोलते हैं, सही काम करते हैं, वे कोप का भाजन बनते हैं और जो उनके सच और सही काम का साथ देते हैं उन पर भी मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है। तो क्या इसका अर्थ यह हुआ कि हमें सच का साथ नहीं देना चाहिए? क्या सच बोलने और सच का साथ देने वाले जीवन रूपी रणभूमि में अकेले ही खड़े रहेंगे? अगर यही सच है तो यह प्रमाणित होता है कि हम सब संक्रमित (Infected) है। और एक संक्रमित व्यक्ति जब दूसरे के संपर्क में आता है तो उसे भी संक्रमित कर देता है, शायद इसी वजह से दुनिया आज ऐसी हो चली है।
      हमें ऐसे अनेक व्यक्ति मिलेंगे जिन्होंने अमानवीय क्रियाएँ (Activities) और परित्यक्त (Abandoned) दुर्गुणों को अपनाकर अथाह धन के मालिक बन बैठे हैं, जिन्हें आज का समाज सफल और उन्नत व्यक्ति की संज्ञा देता है। ऐसे ही अनेक व्यक्तियों को आदर्श मानकर आज के युवा भी उनके पद-चिह्नों को गहरा करने में लगे हैं। सच पूछिए तो ऐसा होना स्वाभाविक ही है क्योंकि आप चाहकर भी इस संक्रमित दुनिया को ठीक नहीं कर सकते। लेकिन हाँ, आप अपने को आंतरिक रूप से इतना बलिष्ठ (Strong) ज़रूर बना सकते हैं जिससे कि आप संक्रमित न हों।
      इसके समाधान और सामाजिक दोषों के निर्मूलन हेतु एक व्यक्ति के लिए सिर्फ़ इतना ही काफी है कि जब वह अपने आप से मिले तो उसको प्रसन्नता हो। जब वह अपने आप से सवाल-जवाब कर रहा हो तो किसी भी स्थिति में समाज की वर्तमान स्थिति का हवाला देकर अपने गलतियों पर मज़बूरी का पर्दा न डालें। अपनी कमज़ोरियों को आज के दौर का प्रचलन कहकर खुद को बेगुनाह साबित करने की कोशिश ना करें। केवल अपनी अंतरात्मा से उत्तर माँगें। यकीनन उत्तर मानवता के पक्ष में ही होगा।
      दूसरी महत्त्वपूर्ण बात, आप जिस योनि में जन्म लाभ किए हैं, उस योनि से निम्न स्तर का काम करना योनि और ईश्वर दोनों का ही अपमान करने जैसा है। आपके कर्मों का उद्देश्य तो यह होना चाहिए कि आपकी उपस्थिति से दुनिया और भी सुंदर और संवेदनशील हो।     


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