खुद को कठघरे में रखिए Khud Ko Kathghare Me Rakhiye By Avinash Ranjan Gupta


खुद को कठघरे में रखिए     
      आज के समय में दुनिया के अधिकांश लोग किसी न किसी तरीके से मानसिक रोग, समस्या या खुद की वजह से परेशान हैं और जो परेशान नहीं हैं वे वो छोटे बच्चे जो अभी तक बोलना नहीं सीखे हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वयस्क हैं परंतु किसी भी प्रकार की समस्या से पीड़ित नहीं है। ऐसे व्यस्कों की संख्या बहुत ही कम है। जो लोग परेशान नहीं होते हैं वे अपने आपको कठघरे (Victim Box) में रखते हैं। किसी भी विवाद से निवृत्त होने का और उसका ठोस समाधान निकालने का यह एक शर्तिया उपाय है।            
      पहले तो आप खुद को दूसरों की जगह रखकर यह महसूस करें कि दूसरों के प्रति आपका शब्द और व्यवहार कैसा  है? अगर आपके साथ किसी ने ऐसे ही शब्दों और व्यवहार प्रयोग किया होता तो आपको कैसा लगता? ज़्यादातर मामलों में आपको अपनी गलती का एहसास होगा और आप स्वयं को ही दोषी पाएँगे। और इससे भी बेहतर तरीका है कि आप सबसे पहले अपने आपको कठघरे में रखकर निष्पक्ष रूप से ये विचार करें कि आपके साथ जो भी समस्याएँ हैं कहीं उन समस्याओं के ज़िम्मेदार आप खुद तो नहीं? यकीन कीजिए ऐसा करने से आपको सबकुछ का सही- सही पता चलेगा।
      आप भी गलतियाँ करते हैं पर अपनी गलतियों को न देखना यह मनुष्य की प्रवृत्ति (Tendency) होती है। सच तो यह है, “हम अपनी गलतियों को ढाँकने के लिए उसे सही या फिर मज़बूरी का जामा पहनाते हैं परंतु दूसरों की गलतियों पर टिप्पणी करते समय हम एक आदर्शवादी राजा हरिश्चंद्र की तुलना खुद से करने लगते हैं।” दरवाज़ा हमेशा धक्का देने से ही नहीं खुलता बल्कि कभी-कभी खींचने से भी खुलता है ठीक उसी प्रकार हमेशा दूसरों की गलती नहीं रहती बल्कि कई बार हमारी भी गलती रहती है।
      हमारा सामान्य बने रहना सामान्य स्थितियों पर ही निर्भर करता है परंतु हमारा सुर (Good) और असुर (Bad) बनना विषम (Adverse) परिस्थितियों (Situations) पर निर्भर करता है। विषम परिस्थिति में लिए गए हमारे फ़ैसले हमारी परवरिश, संस्कृति और मानसिकता का प्रतिफलन (Reflection) करते हैं।
      आज दुनिया की जो हालत (Technically advanced but Ethically not) है उससे हम सब वाकिफ़ हैं और इस हालत के लिए हम भी कुछ अंशों में ज़िम्मेदार हैं और आज हमारी जो हालत है उसके लिए भी हम ही ज़िम्मेदार हैं। दूसरों पर आरोप लगाने से पहले हम अपने अंदर झाँककर देखें तो पता चलेगा कि हमारे अंदर कितनी कमियाँ है। आप कोई भी हों चाहे दुकानदार, नेता, एजेंट, व्यापारी या नौकरीशुदा अपने आपको कठघरे में रखिए और निष्पक्षता से सोचिए कि क्या आपने अपने कर्मों का संपादन सही से किया है? अगर उत्तर हाँ में मिलता है तो आपको अधिकार है मानव कहलाने के और दूसरों की गलतियों पर आरोप लगाने का और अगर उत्तर नहीं  में मिलता है तो विचार कीजिए आप जिस पद पर हैं उस पद पर आपकी जगह कोई और हो सकता था जो आपसे कहीं अधिक मेहनती, ज़रूरतमंद और बुद्धिमान होता। परंतु किन्हीं कारणों से आप उस पद पर आसीन हैं तो क्या ये आपकी ज़िम्मेदारी नहीं बनती कि आप अपने कर्मों का संपादन सही तरीके से करें और अपने पद के साथ न्याय करें।  
      दुनिया बदलेगी या नहीं मैं नहीं जानता पर मैं इतना ज़रूर जनता हूँ कि अगर आपने खुद को कठघरे में रखना शुरू किया तो आपकी दुनिया ज़रूर बदलेगी। इस बात की प्रतिभूति (Guarantee) मैं देता हूँ।   
     


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